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________________ उदयन और वासवदत्ता थोड़े समय बाद दुर्ग का कार्य पूर्ण हो गया। महारानी स्वयं निरीक्षण करने निकलीं। देखिए, महारानी जी ! इस किले की दीवारें उज्जयिनी के सुदृढ़ ईंट-पत्थरों से बनाई गयी हैं। यह भूकम्प से भी नहीं हिल सकतीं। प्राचीरों पर विशाल तोपें सुसज्जित कर दी गई हैं। ये देखिए, नगरद्वार तो सचमुच वज्र कपाट बनाये गये हैं। सचमुच ! आप लोगों ने इसे अभेद बना दिया। दूसरे दिन प्रातः चण्डप्रद्योत का दूत रानी मृगावती उसी रात महासेनानायक को बुलाकर रानी ने आदेश के पास आया दिया नगर के चारों दरवाजे बन्द करवा दो। महारानी की जय ! महाराज महाराज से निवेदन प्राचीरों पर चारों तरफ सशस्त्र सैनिकों जानना चाहते हैं, आप उनके करो, शीघ्र ही सूचित को सावधान रहने का आदेश दो। साथ उज्जयिनी के लिए कब कर दूंगी। प्रस्थान करेंगी? और अगले दिन रानी मृगावती ने चण्डप्रद्योत के पास संदेश पत्र भेजा। 'राजन् ! सिंहनी कितनी भी असहाय हो जाये कभी गीदड़ के साथ नहीं रह सकती। क्या आप नहीं जानते, क्षत्रियाणी अपने प्राण देखकर भी शील की रक्षा करती है। मृगावती सती शिवादेवी की बहन है, प्राण देकर भी धर्म की रक्षा करेगी। Lusana n ellarmentlich un the helle lunit lunare an u then went
SR No.006280
Book TitleUdayan Vasavdatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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