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________________ उदयन और वासवदत्ता सन्देश सुनते ही चण्डप्रद्योत के नथूने फूल अवन्ती की सेना ने पुनः कौशाम्बी को चारों तरफ से घेर लिया। उठे। मदोन्मत हाथियों ने दुर्ग के दरवाजों को तोड़ने का भरपूर धोखा ! महाछल ! धूर्त मृगावती ने मुझे प्रयास किया। किन्तु कोई द्वार नहीं टूट सका। आखिरी ही मूर्ख बना दिया। कौशाम्बी पर पुनः चण्डप्रद्योत की सेना ने ही उस अभेद दुर्ग का निर्माण किया था। आक्रमण करो। ईंट से ईंट बजा दो। चण्डप्रद्योत निराश होकर हाथ मलता रहा। OHLIM चारों तरफ से घेर लो। ओह ! महाछल! VAM 3000 थक हारकर चण्डप्रद्योत की सेना ने दुर्ग के बाहर ही पड़ाव डाल दिया। एक दिन प्रातः आकाश में देव दुंदुभि बज उठी। अगले दिन प्रातः हजारों नारियों के समूह के साथ एक जैसी सफेद देवताओं ने उद्घोष किया साड़ियाँ पहने, हाथों में सफेद पताका लिये रानी मृगावती नगरद्वार PT कल कौशाम्बी के Nसे बाहर निकलकर भगवान के समवसरण की तरफ चल दी। उद्यान में त्रिलोकीनाथ । चण्डप्रद्योत हाथ मलता रह गया। श्रमण भगवान महावीर करुणावतार भगवान पधार रहे हैं। TARA महावीर की जय ! सकता। लगता है अब निर्णय की ____घड़ी आ गई।
SR No.006280
Book TitleUdayan Vasavdatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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