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________________ प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...535 का अभिप्राय व्यक्तियों के समूह से नहीं है अपितु गुण रूपी समुदाय से है। इसलिए तीर्थंकर भी देशना के पहले पूज्य भाव से संघ को नमस्कार करते हैं।10 नन्दी सूत्र में विविध उपमाओं के द्वारा संघ महिमा का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया गया है। नन्दीसूत्रकार संघ की स्तुति करते हुए कहते हैं कि संघ चक्र है, जिसमें 17 प्रकार का संयम नाभि रूप है, 12 प्रकार का तप बारह आरा रूप है और सम्यक्त्व उसका घेरा है। इस प्रकार यह संघ चक्र भव बन्धनों का सर्वथा विच्छेद करने वाला है अत: ऐसे संघ को नमस्कार हो। नन्दी सूत्र में संघ को और भी उपमाएँ देते हुए कहा है___ संघ रथ है, जिस पर अट्ठारह सहस्र शीलांग रूप ऊँची पताकाएँ फहरा रही है, जिसमें संयम और तप रूप अश्व जुते हुए हैं, पाँच प्रकार के स्वाध्याय का मंगलमय मधुर घोष जिससे निकल रहा है ऐसे संघ का कल्याण हो। संघ पद्म है। जिस प्रकार पद्म सूर्योदय होते ही विकसित हो जाता है, उसी प्रकार श्री संघ रूपी पद्म भी तीर्थंकर रूपी सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित होता है। इस प्रकार संघ को चन्द्र, सूर्य, समुद्र, महामन्दर आदि विशिष्ट उपमाओं से उपमित किया गया है। प्रवचन और संघ को तीर्थ स्वरूप माना गया है, क्योंकि प्रवचन अर्थात प्रकृष्ट वचन जो द्वादशांगी रूप है और जिससे जीव भव रूप समुद्र को पार करते हैं, इसलिए तीर्थ भी कहलाता है। तीर्थ शब्द का अर्थ द्वादशांगी भी होता है। द्वादशांगी का आधार संघ है। संघ के बिना द्वादशांगी नहीं रह सकती। अतः द्वादशांगी आधेय और संघ आधार है। आधार और आधेय के अभेद की विवक्षा से प्रवचन और संघ को तीर्थ कहा जाता है।11 - संघ पूजा का महत्त्व इतना अधिक है कि पूजा करने से सभी पूज्यों की पूजा हो जाती है क्योंकि समस्त लोक में संघ के अतिरिक्त दूसरा अन्य कोई पूज्य नहीं है।12 आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं कि जो किसी प्रकार का भेदभाव किए बिना संघ की पूजा करता है वह निकट भविष्य में मोक्ष को प्राप्त करता है।13 वस्तुतः संघ पूजा महादान है, यही वास्तविक लोकसेवा है। यह गृहस्थ धर्म का सार है और इसमें सम्पत्ति का सही उपयोग है। इस प्रकार संघ पूजा सर्वोत्तम पूजा है।14 आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार संघ पूजा का मुख्य फल निर्वाण (मोक्ष)
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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