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________________ 534... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन बोलनी चाहिए।" जैसे कि जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोग चूडामणिम्मि सिद्ध पए । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठित्ति ।। एवं अचलादीसुवि, मेरुप्पमुहेसु होति वत्तव्वं । एते मंगल सद्दा, तम्मि सुह निबंधणा दिट्ठा ।। जिस प्रकार त्रिभुवन चूड़ामणि रूप सिद्धालय में सिद्ध भगवंत शाश्वत रूप से प्रतिष्ठित हैं, जैसे चन्द्र और सूर्य शाश्वत हैं उसी प्रकार यह प्रतिष्ठा भी शाश्वत बने। इसी भाँति जिस प्रकार पर्वत, जम्बूद्वीप लवण, समुद्र आदि शाश्वत हैं, वैसे ही यह प्रतिष्ठा भी शाश्वत बने, इस तरह की मंगल गाथाएँ बोलनी चाहिए। प्रतिष्ठा के समय ऐसे मंगल वचन कल्याणकारी बनते हैं ऐसा शास्त्रज्ञों द्वारा कहा गया है। यहाँ प्रश्न होता है कि मनोगत भाव से भी मंगल हो सकता है फिर गाथाओं के उच्चारणपूर्वक ही मंगल कामना क्यों ? इसके स्पष्टीकरण में आगमकारों का मन्तव्य है कि जिस प्रकार शकुन शास्त्र के अनुसार विजय आदि - मांगलिक शब्द सुनने से इष्ट सिद्धि होती है उसी प्रकार प्रतिष्ठा में भी मंगल वचनों से इष्ट सिद्धि होती है, ऐसा जानना चाहिए । ' कुछ आचार्य पूर्ण कलश, मंगलदीप आदि रखते समय भी मंगल शब्द बोलते हैं किन्तु कुछ आचार्यों के अनुसार परमार्थ से जिनेन्द्र देव ही मंगल रूप हैं इसलिए प्रत्येक कार्य करने से पूर्व भावपूर्वक अरिहन्त परमात्मा के नामों का उच्चारण करना चाहिए। प्रतिष्ठा के दिनों में संघ पूजा क्यों? पूर्वाचार्यों के उल्लेखानुसार प्रतिष्ठा उत्सव काल में एवं प्रतिष्ठा सम्पन्न होने के दिन यथाशक्ति चतुर्विध संघ की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि संघ के धर्माचार्य आदि की पूजा से संघ पूजा अधिक फल वाली होती है। इसका कारण यह है कि तीर्थंकर के बाद पूज्य के रूप में संघ का स्थान हैं और फिर धर्माचार्य आदि का स्थान है। इसलिए धर्माचार्य की पूजा से भी अधिक संघ पूजा का महत्त्व है। संघ अर्थात ज्ञानादि गुणों का समूह। आचार्य हरिभद्रसूरि ने प्रवचन और तीर्थ को संघ कहा है। उनके मतानुसार दोनों शब्द एकार्थवाची हैं। यहाँ संघ शब्द
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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