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________________ 536... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन है और इसका अनुषांगिक फल देवलोक और मनुष्य लोक के सुख हैं। जिस प्रकार खेती का मुख्य फल अनाज की प्राप्ति है, किन्तु अनाज के साथ पुआल भी मिलता है, उसी प्रकार संघ पूजा का मुख्य फल तो मोक्ष है तथा देव और मनुष्य रूप शुभ गति की प्राप्ति उसका आनुषांगिक फल है।15। __ वर्तमान में विशेष रूप से आचार्य की पूजा की जाती है और संघ के लिए प्रभावना और साधर्मिक वात्सल्य किया जाता है। मुखोद्घाटन किन दृष्टियों से आवश्यक है? प्रतिष्ठा के दूसरे दिन सूर्योदय की लालिमा के साथ प्रतिष्ठापित जिनेश्वर परमात्मा का चतुर्विध संघ के साथ दर्शन करना मुखोद्घाटन कहलाता है। इसे द्वारोद्घाटन भी कहते हैं। इसमें प्रमुखतया ढोल-नगाड़े एवं मंगल-गीतों के साथ सकल संघ सम्मिलित होकर नूतन प्रतिमा के दर्शन करने जाते हैं और उनका प्रथम दर्शन कर सभी अपने-आपको धन्याति धन्य अनुभव करते हैं। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि प्रतिष्ठा विधान के समय विशिष्ट पूजोपचार एवं - मन्त्र न्यास होने से जिनबिम्ब देवाधिष्ठित हो जाते हैं और उनमें अद्भुत शक्ति प्रवाह संचरित होने लगता है, तत्फलस्वरूप प्रथम दर्शन करने वाले दर्शकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। गीतार्थ आचार्यों एवं परम्परागत रूप से ऐसा ज्ञात होता है कि बिम्ब के देवाधिष्ठित होने पर नीरव रात्रि में देवी-देवता वहाँ भक्तिगान एवं नृत्यादि करते हैं जिससे देवालय की प्रभावक शक्ति कई गुणा बढ़ जाती है, अत: प्रथम दर्शन का अपना महत्त्व है। सामाजिक दृष्टि से सकल संघ की उपस्थिति में मन्दिर खोलने से वह जिनालय सार्वजनिक घोषित हो जाता है जिससे नगरजन सहजतया वहाँ के दर्शन और पूजन के अधिकारी बन जाते हैं। - धार्मिक दृष्टि से नगर में जिन शासन की प्रभावना होती है जिससे प्रभावित होकर अन्यजन भी वीतराग परमात्मा के दर्शन करने आते हैं। यदि किसी का उपादान परिपक्व हो तो प्रभु दर्शन के माध्यम से सम्यग्दर्शन भी प्राप्त हो सकता है। ___ पारिवारिक दृष्टि से संस्कारों का बीजारोपण होता है और प्रतिदिन दर्शन की भावना का उद्भव होने से मानवीय गुणों का जागरण होता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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