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________________ 486... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन में सुशोभित हो तथा जिनधर्म की कीर्ति चारों दिशाओं में गूंजित हो। इस ध्वज महिमा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित करूं ऐसी शुभ भावना भी समस्त लोगों को करनी चाहिए। ध्वजारोहण सम्बन्धी लौकिक धारणाएँ- ध्वजारोहण के सम्बन्ध में कई लौकिक धारणाएँ प्रसिद्ध हैं। जैसे ध्वजारोहण के पश्चात ध्वजा यदि अच्छे से लहराए तो वह शुभ एवं मंगलकारी होती है। यदि प्रथम बार ध्वजा पूर्व या उत्तर दिशा में लहराए तो वह सर्वकामना सिद्ध करने वाली तथा सुख-संपदा एवं आरोग्यवर्धक होती है। ध्वजा का पश्चिम, वायव्य या ईशान कोण में लहराना शुभ एवं वृष्टि का सूचक है। यदि ध्वजा दक्षिण, आग्नेय, नैऋत्य आदि दिशाओं में लहराये तो अशुभ है। उसके निवारण हेतु दान, पूजा, शांति आदि करनी चाहिए। यदि ध्वजा न लहराए, उल्टी हो जाए अथवा दक्षिण दिशा में लहराए तो अशुभ होती है। यदि गर्भवती महिला ध्वजा को शुभ भावों से आँचल (पल्लु) में ग्रहण करें तो पुत्र की प्राप्ति होती है और वन्ध्यत्व दूर होता है । ध्वजा को मस्तक पर धारण करने से अशुभ कर्म नष्ट होते हैं । ध्वजा सदा सुहागिन सन्नारियों अथवा कन्या के द्वारा ग्रहण की जानी चाहिए इससे निर्धन को धनलाभ होता है। इसी प्रकार की अन्य धारणाएँ भी व्यवहार में प्रसिद्ध हैं। ध्वजारोहण की उपादेयता - ध्वजारोहण एक सामुहिक मंगलकारी प्रसंग है। विविध दृष्टियों से इसके भिन्न-भिन्न लाभ परिलक्षित होते हैं। व्यक्तिगत संदर्भ में ध्वजारोहण का लाभ लेने वाले परिवार की कीर्ति चारों दिशाओं में प्रसरित होती है। लक्ष्मी का सद्व्यय होने से पुण्य बंध होता है जिससे लौकिक एवं लोकोत्तर सुख की प्राप्ति होती है। सामाजिक संदर्भ में चिंतन किया जाए तो ध्वजारोहण के द्वारा सामाजिक वैमनस्य समाप्त होता है। आपसी बंधुत्व एवं मैत्री भाव की स्थापना होती है । सभी लोगों के सम्मिलित होने से आनंद का माहौल बनता है। आध्यात्मिक संदर्भ में इस अनुष्ठान के द्वारा हृदयगत भक्तिभाव प्रकट होते हैं। परमात्म भक्ति, गुरुभक्ति, साधर्मिक भक्ति का लाभ प्राप्त होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मंगल होता है, जिससे उत्तम मोक्षरूपी फल की प्राप्ति होती है । लौकिक दृष्टि से धर्म का उन्नयन होता है और जिनशासन के अनुयायियों की वृद्धि होती है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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