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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...487 कुंभ स्थापना विधि का मांगलिक स्वरूप मिट्टी का घड़ा या कलश कुंभ कहलाता है। प्रत्येक मांगलिक कार्य में कलश की स्थापना की जाती है क्योंकि भारतीय संस्कृति में कलश को मंगलकारी माना गया है अत: उसमें मंगल द्रव्यों का क्षेपण करके श्रेष्ठ स्थान पर उसकी स्थापना करते हैं। कलश स्थापना के माध्यम से मांगलिक कार्य का संकल्प किया जाता है। प्रतिष्ठा आदि के समय कलशों के जल से ही जिनबिम्ब आदि की शुद्धि की जाती है। जन्म कल्याणक मनाते समय अभिषेक हेतु क्षीर सागर के जल को कलशों में ही रखते हैं, क्योंकि साक्षात तीर्थंकर का जन्माभिषेक क्षीरसागर के जल से ही किया जाता है। महोत्सव के प्रारम्भ में मंगल एवं स्थिरता के ध्येय से पूर्व निर्धारित स्थान पर कुंभ को स्थापित करना कुंभ स्थापना कहलाता है। कुंभ स्थापना की आवश्यकता क्यों?- कुंभ पूर्णता, शुभता एवं श्रेष्ठता का सूचक है। लौकिक व्यवहार में भी विवाह आदि मांगलिक प्रसंगों में तथा गृह प्रवेश आदि के समय कुंभ स्थापना की जाती है जिससे कार्य निर्विघ्नतापूर्वक सम्पन्न होता है। कुंभ एक मांगलिक चिह्न है। इसे अमृत कलश भी कहते हैं। भगवद् पुराण के अनुसार कलश स्थापना के पीछे यह हेतु भी माना जाता है कि जब देवों ने क्षीरसमुद्र का मंथन किया तब उसमें से 14 रत्न प्राप्त हुए। उन रत्नों में एक कामकुंभ नाम का श्रेष्ठ कलश भी था। जिसको पाने के लिए देवों और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस कारण कलश से चार जगह अमृत गिर गया। अंततोगत्वा वह अमृत कलश देवों को प्राप्त हुआ, जिसे पीकर वे अमर कहलाए। इस अपेक्षा से भी कुंभ की स्थापना की जाती है। जल अखण्डता का प्रतीक है। यह पूर्ण आयु प्रदान करता है। कुंभ के सभी भागों में देवों का वास माना गया है। इस अपेक्षा से भी सभी मांगलिक एवं धार्मिक स्थानों में इसकी प्रमुखता है। इस पर आलेखित अष्ट मंगल आदि भी मंगल का कार्य करते हैं। जिस प्रकार कुंभ में जल स्थिर रहता है, वैसे ही इसकी स्थापना करने से महोत्सव में मंगल भावों की स्थिरता रहती है। मंगल गान पूर्वक कुंभ को स्थापित करने से वातावरण में मधुरता, सौम्यता आदि के परमाणुओं का वर्धन होता है जिससे समस्त लोगों की भावधारा निर्मल बनती है और उत्सव के माहौल का निर्माण होता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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