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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...485 तीन हाथ ऊँची हो तो संपत्ति में वृद्धि होती है, यदि चार हाथ ऊँची हो तो राज्य सुख की प्राप्ति होती है, यदि पाँच हाथ ऊँची हो तो दुर्भिक्ष नहीं होता है तथा छह हाथ ऊँची हो तो राष्ट्र वृद्धि होती है।11 मन्दिर पर ध्वजा चढ़ाने एवं फड़कने का फल- नूतन प्रतिष्ठित ध्वजा सर्वप्रथम लहराती हई पूर्व दिशा की ओर जाए तो चढ़ाने वाले की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। यदि ध्वजा आग्नेय कोण में जाए तो संताप उत्पन्न होता है। यदि दक्षिण दिशा में जाए तो रोग-शोक और भय उत्पत्ति की संभावना रहती है। यदि नैऋत्य कोण में जाए तो दुःसाध्य रोगोत्पत्ति का संकेत प्राप्त होता है। यदि पश्चिम दिशा में जाए तो कर्ता को मैत्री भाव का विशेष लाभ होता है। यदि ध्वजा वायव्य कोण में जाए तो धान्य-संपत्ति की वृद्धि होती है। यदि उत्तर दिशा में जाए तो धन लाभ की सम्भावना होती है। यदि ईशान कोण की ओर जाए तो दीर्घ आयु सूचक गिनी जाती है। ध्वजा अशुभ दिशा की ओर लहराए तो एक हजार नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिए और शान्ति स्नात्र पूजा करवानी चाहिए।12 ध्वजदंड के विभिन्न नाम- अपराजित पृच्छा में शुभाशुभ फल के आधार पर ध्वजदंड के 13 नाम बताये गये हैं- एक पर्ववाला जयंत, तीन पर्ववाला शत्रुमर्दन, पाँच पर्व वाला पिंगल, सात पर्व वाला सम्भव, नव पर्व वाला श्रीमुख, ग्यारह पर्व वाला आनन्द, तेरह पर्व वाला त्रिदेव, पन्द्रह पर्व वाला दिव्य शेखर, सत्रह पर्व वाला कालदंड, उन्नीस पर्व वाला महा उत्कट, इक्कीस पर्व वाला सूर्य, तेईस पर्व वाला कमल और पच्चीस पर्व वाला विश्वकर्मा कहा जाता है। इन तेरह प्रकार के ध्वज दंडों के नाम पर्व के अनुसार जानने चाहिए तथा उनका शुभाशुभ फल नामानुसार जानना चाहिए।13 __. ध्वजदंड कैसा हो?- प्रासादमंडन के अनुसार ध्वजदंड किसी प्रकार की गाँठ अथवा पोलापन आदि दोषों से रहित, मजबूत लकड़ी का सुन्दर एवं गोलाकार होना चाहिए। उसके पर्व विषम संख्या में और चूड़ियाँ समसंख्या वाली होनी चाहिए।14 ध्वजारोहण करते समय क्या भावना करें?- ध्वजारोहण एक श्रेष्ठ मांगलिक प्रसंग है। ध्वजा फहराते समय सकल विश्व के मंगल की भावना करनी चाहिए। जिस प्रकार फहराती हुई ध्वजा तीनों लोक में सुशोभित होती है, उसी प्रकार परमात्मा के द्वारा प्ररूपित रत्नत्रयी का कल्याणकारी मार्ग मेरे हृदय
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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