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________________ प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ...xivil प्रतिष्ठा के विषय में कई गलत धारणाएँ भी आज लोक व्यवहार में प्रचलित हो गई हैं तो कुछ प्रमुख क्रियाओं का स्वरूप परिवर्तित होते-होते अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है। कई मुख्य क्रियाएँ उनके यथार्थ रहस्यों को समझे बिना परम्परा अनुकरण के रूप में की जाती है। यथार्थतः प्रतिष्ठा एक परम मंगलकारी अनुष्ठान है तथा उसकी सार्थकता एवं सफलता प्रतिष्ठाचार्य के भावों पर निर्भर करती है। प्रस्तुत शोध खण्ड में इस विषयक कई तथ्यों पर विचार किया गया है। यह सुविदित है कि जिनालय निर्माण हेतु भूमि खनन से प्रारम्भ करके प्रभु स्थापना तक अनेकविध अनुष्ठान किये जाते हैं। इस कृति में तत्सम्बन्धी आवश्यक विधियाँ, ऐतिहासिक अवधारणा, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनकी उपादेयता, अभिषेक आदि क्रियाओं के मार्मिक रहस्यों आदि विविध पक्षीय अनुसंधानात्मक चिन्तन प्रस्तुत किया है। यद्यपि इस विषय पर और अधिक बृहद् रूप में कार्य किया जा सकता था किन्तु साधु जीवन की मर्यादा, शोध की समय सीमा और योग्य दिशा निर्देश के अभाव में इसके कई पहलू अभी भी मेरे लिए प्रश्न चिह्नवत ही है। सामान्यतया यह शोध प्रबन्ध सप्तदश अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में शास्त्रनुसार प्रतिष्ठा के विभिन्न अर्थ, उनके अभिप्रायार्थ एवं उनमें अन्तर्भूत रहस्यों को उजागर किया गया है। इसी के साथ प्रतिष्ठा की विभिन्न परिभाषाएँ और प्रकार भी बताए गए हैं। सामान्य रूप से प्रतिष्ठा का अर्थ जिनबिम्ब में प्राणों का आरोपण समझा जाता है। कहीं-कहीं तो यह भी कहा जाता है कि भगवान को स्वर्ग से बुलाकर मूर्ति में प्रतिष्ठित किया जाता है। जबकि यथार्थत: तो जिनबिम्ब में प्रतिष्ठाकारक आचार्य आदि के शुभ भावों का आरोपण किया जाता है। इसी तरह की कई मिथ्या धारणाओं का खण्डन करने का प्रयास इस अध्याय में युक्ति पूर्वक किया गया है। दूसरे अध्याय में प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों की चर्चा की गई है। उसमें प्रतिष्ठा कर्ता आचार्य, प्रतिष्ठा कारक गृहस्थ, पौंखण आदि क्रिया में सहयोगी महिलाओं एवं शिल्पी आदि की योग्यताओं का वर्णन किया गया है। तीसरे अध्याय में प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक तत्त्वों का मूल्यपरक विश्लेषण किया गया है। आज का वैज्ञानिक युग शोध परक युग है। आज युवा वर्ग प्रत्येक क्रिया-अनुष्ठान करने से पूर्व उनके रहस्यों के विषय में जानना
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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