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________________ xivii... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन चाहता है। ताकि अपने व्यस्त Schedule में समय का सम्यक् नियोजन कर सकें। वर्तमान मानसिकता को ध्यान में रखते हुए इस अध्याय में प्रतिष्ठा का स्वरूप, प्रतिष्ठा आवश्यक क्यों, विविध संदर्भो में प्रतिष्ठा के लाभ, प्रतिष्ठा सम्बन्धी बोलियों का विवरण, प्रतिष्ठाचार्य की वेश-भूषा आदि अनेक रूचिकर विषयों की चर्चा की गई है। आज लोगों के पास Theatre, club, Mall, Community Centres में जाने के लिए समय है परन्तु मंदिर या उपाश्रय आदि धार्मिक स्थलों में जाने के लिए कहा जाए तो वहाँ से बचने के सौ बहाने उनके पास हैं। चौथे अध्याय में जिनालय आदि का मनोवैज्ञानिक एवं प्रासांगिक स्वरूप बतलाते हुए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता एवं उपादेयता को सिद्ध किया है। जिनालय के विशुद्ध परमाणु एवं जिनबिम्ब से निकलती सकारात्मक शक्ति सम्पन्न किरणे मनुष्य के उद्वेलित मन को शान्त करने एवं Positive energy देने में Battery का कार्य करती हैं। वर्तमान भागमभाग की जिन्दगी में शान्ति पाने के लिए व्यक्ति ध्यान, विपश्यना आदि प्रयोगों हेतु इधर-उधर भटक रहा है, जबकि जिनमंदिर में विराजित प्रशान्त मुखमुद्रा युक्त तेजस्वी जिन प्रतिमा का मनोयोग पूर्वक किया गया ध्यान एवं दर्शन स्वत: बड़ी से बड़ी Tension से मुक्त कर देता है। इस अध्याय में जिनबिम्ब की आवश्यकता एवं उसके महत्त्व आदि विषयक उपयोगी चर्चा की गई है। ____ समय एक अमूल्य निधि है तथा इसका मूल्य सभी को ज्ञात है। प्रत्येक क्रिया का एक समय होता है और उस समय में की गई क्रिया सर्वाधिक लाभकारी होती है। इसीलिए ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त को एक महत्त्वपूर्ण घटक माना गया है। नगर स्थित जिनालय स्थानीय श्री संघ के अभ्युदय में परम निमित्तभूत बनता है अत: उसके निर्माण हेतु कैसे मुहूर्त का चयन करना इत्यादि की सम्यक् जानकारी पाँचवें अध्याय में प्रस्तुत की गई है। जिनमंदिर निर्माण कोई सामान्य बिल्डिंग या गृह निर्माण का कार्य नहीं कि उसे इंजिनियर को कोन्ट्रेक्ट पर दे दिया जाए। आज एक घर बनाने से पहले भी व्यक्ति कई लोगों के सुझाव लेता है। ऐसी स्थिति में जिन मंदिर निर्माण में तो सावधानी रखना अत्यावश्यक है। गीतार्थ आचार्यों ने इस सम्बन्ध में सटीक दिशानिर्देश देते हुए जिनमन्दिर निर्माण हेतु भूमि कैसी हो? जिनालय का निर्माण करवाते समय किन मुद्दों पर ध्यान दिया जाए? जिनालय हेतु कैसे द्रव्यों का उपयोग किया
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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