SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 473
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...407 यहाँ दीवार से स्पर्श करके मूर्ति स्थापित न करें उसे सर्वथा अशुभ माना गया है।38 गर्भगृह से छज्जे की चौड़ाई सवा गुनी करें अथवा एक तिहाई या आधा भाग भी बढ़ा सकते हैं। कोना, प्रतिरथ, भद्र आदि अंगवाला और तिलक-तवंग आदि भूषण वाला शिखरबद्ध काष्ठ मन्दिर घर देरासर में न रखें किन्तु तीर्थयात्रा संघ में रखने पर कोई दोष नहीं है। यात्रा से लौटने के पश्चात उसे गृह मन्दिर में न रखकर रथशाला या जिनमंदिर में रखें।39 गृहबिम्ब का परिमाण एवं उसके शुभाशुभ लक्षण जन समुदाय की अपेक्षा गृह मन्दिर प्रायः आकार में छोटा होता है तो यह शंका होना स्वाभाविक है कि गृह चैत्य में स्थाप्य प्रतिमा का परिमाण क्या हो? पूर्वाचार्यों ने इस सम्बन्ध में विस्तृत निरूपण किया है। आचार्य उमास्वाति, आचार्य वर्धमानसूरि आदि गृह बिम्ब की चर्चा करते हुए कहते हैं कि • बृहद् चैत्य में विषम अंगुल या हस्त परिमाण वाले बिम्ब को ही स्थापित करना चाहिए, सम अंगुल परिमाण वाले बिम्ब को स्थापित न करें।40 • बृहद् चैत्य में बारह अंगुल से कम परिमाण वाले बिम्ब को भी स्थापित नहीं करना चाहिए किन्तु गृह चैत्य में इस नियम के विरुद्ध ग्यारह अंगल से अधिक परिमाण वाले बिम्ब की स्थापना नहीं करना चाहिए। • गृह चैत्य में लोह, अश्म, काष्ठ, मिट्टी, हाथी दाँत एवं गोबर से निर्मित प्रतिमा की भी पूजा नहीं करनी चाहिए। • पूर्वाचार्यों के मतानुसार गृह चैत्य में खण्डित अंग वाली प्रतिमा, वक्र प्रतिमा तथा मल्लिनाथ, नेमिनाथ एवं महावीर स्वामी की प्रतिमा वैराग्य प्रधान होने के कारण न पूजें।41 परिमाण से अधिक या कम परिमाप वाली तथा विषम अंग वाली प्रतिमा परिवार के लिए अप्रतिष्ठित, दुष्ट और अशुभ होती है। • शिल्प रत्नाकर आदि के अनुसार ग्यारह अंगल तक की प्रतिमा में भी एक अंगुल की प्रतिमा श्रेष्ठ होती है। दो अंगुल की प्रतिमा धन का नाश करती है। तीन अंगुल वाली प्रतिमा सिद्धि देने वाली होती है। पाँच अंगुल वाली प्रतिमा वृद्धिकारक होती है। छह अंगुल वाली प्रतिमा उद्वेग कारक होती है। सात अंगुल वाली प्रतिमा पशु धन की वृद्धिकारक होती है। आठ अंगुल वाली प्रतिमा हानिकारक होती है। नौ अंगुल वाली प्रतिमा पुत्र की वृद्धि करने वाली होती है। दस अंगुल वाली प्रतिमा धन का नाश करती है और ग्यारह अंगुल वाली प्रतिमा
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy