SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 406... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन __उक्त न्यास विधि में देवताओं के नाम का मंत्रोच्चार करते हुए द्वार के चिह्नत अंगों पर तीन बार वासचूर्ण डालकर देवताओं की स्थापना करें। फिर संनिरोध करें तथा दुर्वा, वासचूर्ण एवं अक्षत से उनका पूजन करें। • तदनन्तर शान्तिमंत्र से बलि को अभिमन्त्रित करें। फिर दिक्पालों के नामों का उच्चारण करते हुए पूर्वादि दिशाओं में बलि प्रदान करें तथा श्री संघ की भक्ति करें।34 ॥ इति चैत्य द्वार प्रतिष्ठा विधि ।। गृह चैत्य निर्माण विधि गृहस्थ श्रावक पूजा-अर्चना के लिए अपने निवास स्थान पर भी गृह मन्दिर बनायें, ऐसा शास्त्र वचन है। इसका मुख्य कारण यह है कि समुदायगत मन्दिर में जाना संभव न हो तो भी त्रिकाल दर्शन एवं पूजा करने का नियम पल सकता है। दूसरे, शारीरिक अस्वस्थता, समयाभाव आदि परिस्थितियों में भी जिनदर्शन किया जा सकता है। वर्तमान में जनसंख्या विस्तार के कारण बस्तियाँ फैलती जा रही है ऐसी स्थिति में सब जगह संघीय मन्दिर संभव नहीं है अत: गृह चैत्य कई हेतुओं से उपयुक्त है। आधुनिक युग में बढ़ती हुई व्यापारिक व्यस्तता के दौर में भी घर में मन्दिर हो तो काम पर निकलने के पूर्व पूजा-भक्ति की जा सकती है। जैनाचार्यों ने गृह चैत्यालय का स्पष्ट निर्देश दिया है। गृह चैत्य निर्माण की प्रक्रिया वास्तुसार प्रकरण के अनुसार घर देरासर काष्ठ का एवं पुष्पक विमान के समान वर्गाकार आकृति वाला बनायें। इसमें पीठ, उपपीठ तथा उस पर वर्गाकार तल बनायें। मन्दिर के चारों कोनों में चार स्तम्भ लगायें। चारों दिशाओं में तोरण युक्त चार द्वार और चार छज्जा बनायें। ऊपर में कनेर के पुष्प की भाँति पाँच शिखर (चार कोनों में चार और एक मध्य में गुमटी) बनायें। अन्य मतानुसार एक या तीन द्वार वाला और एक गुमटी वाला मन्दिर भी बना सकते हैं।35 ___ छज्जा, स्तंभ एवं तोरण युक्त गृहचैत्य के ऊपर मंडप के शिखर जैसा शिखर बनायें, परन्तु कनेर फूल की कली के आकार वाला शिखर न बनायें।36 गृह चैत्य की गुमटी के ऊपर कभी भी ध्वजादण्ड नहीं रखें, परन्तु आमलसार कलश लगा सकते हैं।37
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy