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________________ दिशा पूर्व दक्षिण नैऋत्य 408... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन सर्व कामनाओं की पूर्ति करने वाली होती है। इस तरह बताए गए परिमाणानुसार गृह चैत्य में विषम अंगुल का बिम्ब ही स्थापित करें। इससे अधिक परिमाण वाले बिम्ब को घर देरासर प्रतिष्ठित न करें।42 दिशा-विदिशाओं में गृह चैत्य बनाने का शुभाशुभ फल ___ वास्तुशास्त्र के अनुसार गृह चैत्य के लिए पूर्वादि कुछ दिशाएँ शुभ मानी गई है और शेष अशुभ। उसकी सारणी निम्नोक्त है फल ऐश्वर्य, लाभ, यश-प्रतिष्ठा की प्राप्ति आग्नेय अशुभ एवं आराधना की निष्फलता अशुभ एवं शत्रु वृद्धि भूत-पिशाच की बाधाएँ पश्चिम अशुभ एवं धन हानि वायव्य अशुभ एवं रोगोत्पत्ति उत्तर शुभ, धन लाभ एवं ऐश्वर्य प्राप्ति ईशान सुख-शांति एवं सर्व कार्य सिद्धि गृहचैत्य एवं प्रतिमा स्थापना के कुछ निर्देश 1. गृह मन्दिर में जिस तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापित करनी हो उनकी एवं गृह स्वामी की गुण राशि का मिलान करने के पश्चात मूर्ति रखें। अर्थात जिस तीर्थंकर की राशि, गृह मालिक की राशि के अनुकूल हो उसे ही रखें। 2. गृह मन्दिर में पाषाण, लेप, हाथी दाँत और काष्ठ की प्रतिमा कदापि नहीं रखें, केवल धातु या रत्न की प्रतिमा शुभ मानी गई है। 3. गृह मन्दिर में पद्मासनस्थ प्रतिमा ही स्थापित करें। 4. बिना परिकर वाली प्रतिमा नहीं रखें। 5. गृह चैत्य का निर्माण इस तरह करवायें कि प्रतिमा की पीठ मुख्य वास्तु या घर की तरफ न आये। अन्यथा गृह स्वामी को सर्व प्रकार से हानि की संभावना रहती है। 6. किसी भी देव स्थान के ऊपर वजन न रखें। 7. चैत्यालय सीढ़ी के नीचे न बनायें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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