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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...381 नन्द्यावर्त्त आलेखन एवं पूजन विधि नन्द्यावर्त्त का पारिभाषिक अर्थ है नवकोणात्मक स्वस्तिक की रचना। नंदी + आवर्त इन दो शब्दों के योग से नंद्यावर्त की रचना हुई है। नन्दी शब्द मंगल, समृद्धि, सम्पूर्णता, अखण्डता आदि का वाचक है। नन्दी का मुख्य अर्थ ज्ञान है। ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ केवलज्ञान की प्राप्ति हेतु नंद्यावर्त पूजन करते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि केवलज्ञान की प्राप्ति होने के बाद ही समवसरण की रचना होती है अतः समवशरण में ज्ञान की प्रधानता है। इसीलिए समवसरण के प्रतीक रूप में त्रिगड़ा रचना को नन्दी रचना कहते हैं। दीक्षा, व्रत, उपधान आदि प्रसंगों पर समवसरण रूप नाण मांडी जाती है। नाण शब्द ज्ञान का ही अपभ्रंश रूप है। समवसरण में चार निकाय देवों के जघन्यत: करोड़ों देवता उपस्थित रहते हैं। उन देवों की भी वर्गानुक्रम से पर्षदा होती है। नन्द्यावर्त पट्ट के आवर्तों में इनका भी अंकन किया जाता है। इस प्रकार तीर्थंकर परमात्मा के ज्ञानातिशय के साथ सम्बन्ध रखने वाला यह पूजन अंजनशलाका-प्रतिष्ठा के प्रसंग पर जरूर करना-करवाना चाहिए। सुविहित आचार्यों ने भी इसका आलेखन किया है। नन्द्यावर्त पूजन करने का दूसरा हेतु यह है कि नव का अंक अक्षत अंक माना जाता है इसलिए अक्षय पद की प्राप्ति हेतु नवकोणात्मक नन्द्यावर्त पूजन अवश्य करना चाहिए। ध्यातव्य है कि नन्द्यावर्त्त पूजन करने से पूर्व एक काष्ठ पट्ट पर नन्द्यावर्त की रचना कर कुछ आवत्र्तों में उल्लिखित विधि के अनुसार देवी-देवता, विद्या देवियाँ, तीर्थंकर माता, दिक्पाल इन्द्र आदि के नाम लिखे जाते हैं उसके पश्चात उन्हीं नामों का उच्चारण करते हुए पुष्प आदि से प्रत्येक का पूजन करते हैं। ___ यहाँ प्रश्न होता है कि नन्द्यावर्त पट्ट में कितने वलय (आवर्त) होने चाहिए? यदि प्राचीन-अर्वाचीन प्रतिष्ठा कल्पों को देखा जाए तो उनमें संख्या भेद नजर आता है। निर्वाणकलिका, श्रीचन्द्रकृत प्रतिष्ठाकल्प एवं विधिमार्गप्रपा में छह, आचार दिनकर में दस और सकलचन्द्रकृत प्रतिष्ठाकल्प में आठ वलय का उल्लेख है। वलयों में लिखे जाने वाले नामों के क्रम में भी अन्तर है। वर्तमान में आठ अथवा दस वलय के अनुसार यह पूजन करते हैं। कल्याण
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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