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________________ 380... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन फिर गुरु महाराज संघ के साथ चार स्तुतियों से देववन्दन करें। इसी क्रम में क्षेत्र देवता, भुवन देवता एवं क्षुद्रोपद्रव देवताओं के कायोत्सर्ग करके उनकी स्तुतियाँ बोलें। तदनन्तर आचार्य बिम्ब स्थापना की महिमा का उपदेश दें। उस दिन प्रभावना करें। गुरु को अन्न-वस्त्रादि बहराएं। साधर्मिक वात्सल्य करें। संघ पर केशर के छांटने करें। विजयमुहूर्त में अष्टोत्तरी या स्नात्रपूजा करावें। रात्रि में पूर्व दिन की तरह सोलह पात्र की विधि करवाएं। उसके बाद प्रभुजी के सन्मुख एक पट्टे के ऊपर एक जवार की थाली, उसके ऊपर सवा किलो बूंदी का लड्डू और उसके ऊपर अणविंध्या एक मोती रखें। नवीन बिम्ब को देवगृह में स्थापित करने की विधि जिस दिन नूतन बिम्ब की अंजनशलाका (प्राण प्रतिष्ठा) हुई हो उसी दिन प्रतिमा को चैत्यगृह में प्रतिष्ठित करना हो तो कल्याणकलिका के अनुसार यह विधि है जिस वेदी पर प्रतिमा स्थापित करना हो वहाँ पहले कुंभकार के चाक की मिट्टी और डाभ स्थापित करें। उसके ऊपर चंदन का स्वस्तिक करें। फिर उसके ऊपर तीन प्रकार के आसन यंत्रों में से कोई एक यंत्र मूलनायक विराजमान करने की जगह पर स्थापित करें अथवा लिखें। उसके बाद सभी दिशाओं में बलि बाकुला का प्रक्षेपण करें। ____ तत्पश्चात मुहूर्त का समय निकट आने पर "ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिन बिम्बं धारय-धारय स्वाहा" इस मंत्र को सात बार कहकर भगवान का आसन अभिमंत्रित करें। फिर शुभ मुहूर्त की वेला में नूतन बिम्ब को आसन पर स्थापित कर 'ॐ स्थावरे तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा' इस मन्त्र का प्रतिमा के ऊपर सात बार न्यास करें तथा प्रतिमा के ऊपर वासचूर्ण डालें। गृहस्थ स्नात्रकार चन्दन से पूजा करें, धूप प्रगटाएं, सुगंधित पदार्थ चढ़ाएं और मंगल दीपक करें। ___ वर्तमान में प्रतिमा स्थापन की शुभ घड़ियों में 'ॐ पुण्याह-पुण्याह' 'प्रीयन्तां-प्रीयन्तां' ऐसे मंगलकारी शब्दों का उद्घोष भी करते हैं जिससे समूचा वातावरण प्रभु भक्तिमय बन जाता है।22 ॥ इति जिनबिम्ब प्रतिष्ठा विधि ।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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