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________________ 382... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन कलिका में प्राचीन एवं नव्य दोनों प्रतिष्ठा पद्धतियों के आधार पर नन्द्यावर्त्त पूजन विधि कही गई है। यहाँ प्राचीनता के मूल्य को अक्षुण्ण रखते हुए छह वलयों से युक्त नन्द्यावर्त्त विधि कही जा रही है। नन्द्यावर्त्त के प्रथम वलय में अर्हदादि 8 और इन्द्रादि 4, दूसरे में 24 जिनमाता, तीसरे वलय में 24 लोकान्तिक देव, चौथे वलय में 16 विद्या देवियाँ, पाँचवें वलय में इन्द्रादि 8, छठे वलय में दिशापाल 10 ऐसे कुल 94 पदों का पूजन एवं आलेखन किया जाता है। नन्द्यावर्त्त आलेखन की विधि विधिमार्गप्रपा के अनुसार नन्द्यावर्त्त रचना विधि इस प्रकार हैकुछ निर्देश - 1. यह आलेखन पूजनकर्ता अथवा विधिकारक भद्रासन ऊपर बैठकर करें। 2. सर्वप्रथम लगभग एक गज सम चौरस बने हुए श्रीपर्णी के पट्ट पर कर्पूर मिश्रित चन्दन रस से सात लेप करें। फिर कर्पूर, कस्तूरी, गोरोचन, कुंकुम और केशर मिश्रित रस से अनार की कलम के द्वारा प्रदक्षिणा के क्रम पूर्वक नव कोण युक्त नन्द्यावर्त्त का आलेखन करें। 3. तत्पश्चात नन्द्यावर्त्त रचना के मध्य भाग में चल बिम्ब की स्थापना करें। 4. उसके बाद जिनबिम्ब के दाहिनी ओर सौधर्मेन्द्र, बायीं ओर ईशानेन्द्र और नीचे की तरफ श्रुतदेवी की स्थापना करें। 5. तदनन्तर नन्द्यावर्त्त की परिधि को वलय से वेष्ठित कर अनुक्रम से बाहर के भाग की तरफ छह वलय करें। प्रथम वलय- परिधि से बाहर प्रथम वलय में आठ गृह (खण्ड) की रचना कर उनमें पंच परमेष्ठी एवं रत्नत्रय इन आठ के नाम लिखें- 1. ॐ नमोऽर्हद्भ्यः स्वाहा 2. ॐ नमः सिद्धेभ्यः स्वाहा 3. ॐ नमः आचार्येभ्यः स्वाहा 4. ॐ नमः उपाध्यायेभ्यः स्वाहा 5. ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः स्वाहा 6. ॐ नमो ज्ञानाय स्वाहा 7. ॐ नमो दर्शनाय स्वाहा 8. ॐ नमः चारित्राय स्वाहा। उसके बाद नन्द्यावर्त्त के पूर्वादि चारों दिशाओं में दिशाधिपति सोम, यम, वरुण, कुबेर का नामोल्लेख तथा चारों दिशाधिपतियों के धनु, दण्ड, पाश, गदा - इन चिह्नों का अंकन करें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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