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________________ जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...149 चाहिए। अकेला धनिक इन्हें न बनायें, यदि वह चाहे तो राजा के साथ बनायें अन्यथा महा अनिष्ट की संभावना रहती है।68 चतुर्थ विभाग- शिल्प ग्रन्थों में मेरू जाति के अन्य बीस प्रासादों का भी उल्लेख है। यह भेद शिखर एवं तल के विभागों के अंतर के आधार पर किया गया है। इनके शिखरों की रचना अंडक एवं तिलक पर आधारित है। उनके नाम इस प्रकार हैं- 1. ज्येष्ठ मेरू 2. मध्यम मेरू 3. कनिष्ठ मेरू 4. मन्दिर 5. लक्ष्मी कोटर 6. कैलास 7. पंचवक्त्र 8. विमान 9. गंधमादन 10. मुक्तकोण 11. गिरि 12. तिलक 13. चंद्रशेखर 14. मन्दिर तिलक 15. सौभाग्य 16. सुन्दर 17. श्री तिलक 18. विशाल 19. पर्वतकूट 20. नन्दिवर्धन।69 पंचम विभाग- शिल्प रत्नाकर में तिलक सागर आदि पच्चीस मंदिरों का वर्णन किया गया है। इन मंदिरों में कोने एवं फालना (खांचों) के आधार पर तल के विभाग किये जाते हैं तथा पृथक्-पृथक् संरचनाओं के आधार पर शिखर के भेद-प्रभेद किये जाते हैं। फिर उन्हीं के आधार पर इन मन्दिरों के नाम का बोध होता है। तिलक सागर आदि पच्चीस प्रासाद सभी देवों के लिए उपयुक्त हैं तथा पूजक एवं निर्माणकर्ता दोनों के लिए कल्याणकारक है। यद्यपि प्रत्येक प्रासाद शास्त्र सम्मत बनवायें अन्यथा शिल्पकार और स्थापन कर्ता दोनों ही वंश नाश को प्राप्त होते हैं।70 तिलक सागर आदि 25 प्रासादों की नामावली इस प्रकार है- 1. तिलक सागर 2. गौरी तिलक 3. इन्द्र तिलक 4. श्री तिलक 5. हरि तिलक 6. लक्ष्मी तिलक 7. भू तिलक 8. रंभा तिलक 9. इन्द्र तिलक 10. मन्दिर तिलक 11. हेमवान तिलक 12. कैलास तिलक 13. पृथ्वी तिलक 14. त्रिभुवन तिलक 15. इन्द्रनील तिलक 16. सर्वांग तिलक 17. सुरवल्लभ तिलक 18. सिंह तिलक 19. मकरध्वज तिलक 20. मंगल तिलक 21. तिलकाक्ष 22. पद्म तिलक 23. सोम तिलक 24. विजय तिलक 25. त्रैलोक्य तिलक।1 षष्ठम विभाग- यह विभाग केवल जिनेश्वर परमात्मा के प्रासाद से सम्बन्धित है। वास्तुसार प्रकरण में तीर्थंकर प्रभु के लिए अत्यन्त मंगलकारी सात प्रासादों का नामोल्लेख किया गया है और उन्हें परम श्रेष्ठ माना है। वे नाम इस प्रकार हैं- 1. श्री विजय 2. महापद्म 3. नंद्यावर्त 4. लक्ष्मी तिलक नरवेद 6. कमलहंस और 7. कुंजर।72
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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