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________________ 150... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन दीपार्णव आदि शिल्प ग्रन्थों में चौबीस तीर्थंकरों के मन्दिरों का सविस्तृत वर्णन किया गया है। इनमें चौबीस तीर्थंकरों से सम्बन्धित 72 जिनालयों का सचित्र वर्णन प्राप्त होता है। किस तीर्थंकर के प्रासाद में तल का विभाग, शिखर की सज्जा, श्रृंग संख्या, तिलक संख्या आदि कितनी होनी चाहिए? तद्विषयक जानकारी के लिए शिल्पकार, सोमपुरा एवं जिज्ञासु वर्ग को मूल ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए।73 यहाँ इतना अवश्य ध्यान रखें कि जिनालय में मूलनायक के रूप में जिस तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान करना हो, मन्दिर उस तीर्थंकर के नाम के अनुरूप उसी जाति का बनाया जाये तो निर्माता एवं समाज दोनों के लिए परम मंगलकारी होता है। ___ उत्तर भारतीय नागर जाति की शैली के प्रासादों को शास्त्रकार 'वल्लभ' शब्द से सम्बोधित करते हैं इसलिए ऐसे जिनालय आज वल्लभी प्रासाद के नाम से प्रसिद्ध है। प्रासादों के प्रकार एवं उनकी उत्पत्ति के कारण शिल्प सम्बन्धी ग्रन्थों में अनेकविध प्रासादों का वर्णन प्राप्त होता है। यहाँ प्रश्न होता है कि हजारों की संख्या में प्रासादों का उद्भव कैसे हुआ? शिल्प रत्नाकर में इसका वर्णन करते हुए कहा है कि ब्रह्मा के वचन का अनुसरण कर देवों के द्वारा पूजा करने से वैराज्य, पुष्प, कैलाश, मणिपुष्प और त्रिविष्टप- इन पाँच प्रासादों की उत्पत्ति हुई। यदि इन पाँच प्रासादों के अवान्तर भेदों की चर्चा करें तो वैराज्यादि 588, पुष्पकादि 300, कैलाशादि 500, मणिपुष्पादि 150 और त्रिविष्टयादि 350 प्रकार के होते हैं। वैराज्य आदि पाँच प्रासादों का अवान्तर भेदों के साथ जोड़ किया जाये तो कुल 1888 संख्या होती है।74 देवताओं के पश्चात दानवों के राजाओं ने महोत्सव पूर्वक पूजा की, उससे स्वस्तिक, सर्वतोभद्र, वर्धमान, सूत्रपद्म और महापद्म- ऐसे द्राविड़ जाति के पाँच प्रासाद उत्पन्न हुए। इनमें से प्रत्येक के 100-100 अवान्तर भेद हैं। इस प्रकार दानवों की पूजा से कुल 500 प्रासादों की उत्पत्ति हुई।75_ ___गंधर्वो ने पाँच महोत्सव पूर्वक पूजा की, उससे रूचक, भव, पद्याक्ष, मलय और बक नामक लतिनादि जाति के पाँच प्रासाद उत्पन्न हुए। उनके अवान्तर भेद 25 हैं।76
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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