SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 148... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 2. द्राविड़ प्रासाद- इस जाति के प्रासादों में तीन अथवा पाँच पीठ होती है । __ और पीठ के ऊपर वेदी का निर्माण किया जाता है। उनके कोने लताओं ___ अथवा श्रृंगों से युक्त होते हैं।63 3. भूमिज प्रासाद- इस जाति के प्रासाद एक के ऊपर एक ऐसे नौ मंजिला बनते हैं और उनमें नीचे के माले से ऊपर-ऊपर के माले छोटे होते हैं। इस प्रकार भूमि जाति के प्रासाद पद विभक्ति वाले और ऊपर में श्रृंगों वाले होते हैं।64 4. लतिन प्रासाद- इस जाति के प्रासाद एक श्रृंग वाले होते हैं। 5. श्रीवत्स प्रासाद- ये प्रासाद वारि मार्ग से युक्त होते हैं। 6. सांधार प्रासाद- ये प्रासाद परिक्रमा युक्त होते हैं। इनका आकार दस हाथ से बड़ा होता है तथा इनमें सूर्य किरणों का सीधा प्रवेश नहीं होता है।65 7. विमान नागर प्रासाद- इस जाति में केसरी आदि प्रासादों का सम्मिश्रण होता है। इन प्रासादों के कोनों के ऊपर अनेक विमान श्रृंग और भद्र के ऊपर अनेक उरु श्रृंग चढ़ाते हैं तथा शिखर विमान के आकार वाला पाँच मंजिला होता है।66 8. मेरू प्रासाद- इस जाति के प्रासाद पाँच हाथ से बड़े बनाये जाते हैं। पाँच हाथ के विस्तार वाले मेरू प्रासाद के शिखर के ऊपर 101 श्रृंग चढ़ाये जाते हैं। फिर पाँच हाथ से एक-एक पचास हाथ तक बढ़ाने पर पैंतालीस भेद होते हैं। उन प्रत्येक के ऊपर अनुक्रम से बीस-बीस श्रृंग अधिक चढ़ाने पर पचास हाथ के विस्तार वाले मेरू प्रासाद के ऊपर 1001 श्रृंग होते हैं जैसे पाँच हाथ के मेरू प्रासाद के ऊपर 101, छह हाथ के प्रासाद के ऊपर 120, सात हाथ के प्रासाद के ऊपर 141 इस प्रकार श्रृंग चढ़ाये जाते हैं।67 प्रासाद मंडन में मेरू प्रासाद को नौ भागों में बाँटा गया है उनके नाम ये हैं- 1. मेरू प्रासाद 2. हेम शीर्ष मेरू 3. सुरवल्लभ मेरू 4. भुवन मंडन मेरू 5. रत्न शीर्ष मेरू 6. किरणोद्भव मेरू 7. कमल हंस मेरू 8. स्वर्णकेतु मेरू 9. वृषभ ध्वज मेरू। मेरू प्रासाद परिक्रमा युक्त एवं बिना परिक्रमा वाले दोनों तरह बनाये जाते हैं। प्रासादमंडन के अनुसार इस जाति के प्रासाद सिर्फ राजाओं को ही बनाना
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy