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________________ 112... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन हैण्डपंप वर्तमान में यह पद्धति चल पड़ी है कि अल्प स्थान एवं सुविधाजनक होने के कारण कुएँ के स्थान पर नलकूप खुदाये जाते हैं। कुआँ खुदवाने के लिए जो दिशाएँ निर्दिष्ट की गई हैं नलकूप हेतु भी उन्हीं दिशाओं को श्रेष्ठ समझना चाहिए। यहाँ यह भी ध्यान रखें कि नलकूप में ऐसी व्यवस्था हो कि जल छानने के उपरान्त जिवानी पुनः जल में डाली जा सके। यदि कुआँ कम गहरा हों तथा आस-पास की बस्ती के सैप्टिक टेंकों का गन्दा पानी कुएँ में आने लगे तो उस पानी का कदापि प्रयोग न करें। ऐसी स्थिति में नलकूप का पानी उपयोग में लेना चाहिए। भूमिगत जल टंकी यदि जिनालय में भूमिगत जल टंकी का निर्माण करना आवश्यक हो तो इसे पूर्व, उत्तर या ईशान दिशा में ही बनवायें। मुख्य द्वार से हटकर बनवायें। किसी भी स्थिति में आग्नेय कोण में जल टंकी न बनायें । ओवर हेड टेंक सिर्फ नैऋत्य कोण में बनवायें, इसे दक्षिण में भी बना. सकते हैं। अन्य दिशाओं में जल टंकी का निर्माण समाज के लिए अनिष्टकारी हो सकता है। सीढ़ियाँ मन्दिर अथवा अन्य धर्मायतनों में बहु मंजिला निर्माण होने की स्थिति में सीढ़ियों का निर्माण आवश्यक होता है। इसी तरह मन्दिर के प्रमुख प्रवेश द्वार तक पहुँचने के लिए भी सोपान आवश्यक है। प्रवेश द्वार के सामने जो सीढ़ियाँ बनाई जाये, उनका उतार पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। सीढ़ियों का आकार वर्गाकार या आयताकार रखना श्रेयस्कर है। इन्हें गोलाकार या त्रिकोण नहीं बनायें अन्यथा कोण कटने का दोष उत्पन्न होगा। ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ किसी भी स्थिति में ईशान, पूर्व, उत्तर एवं मध्य में नहीं बनायें। सीढ़ियाँ बनाने के लिये दक्षिण एवं नैऋत्य दिशाएँ उत्तम हैं। पश्चिम, आग्नेय और वायव्य में भी सोपान का निर्माण किया जा सकता है। सीढ़ियों का चढ़ाव पूर्व से पश्चिम अथवा उत्तर से दक्षिण की तरफ ही होना चाहिए। यदि सीढ़ियों को घुमाकर लाना हो तो पूर्व या उत्तर में घूमकर प्रवेश करें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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