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________________ जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ... 111 6. ओवर हेड टंकी इस प्रकार बनायें कि मन्दिर के शिखर से स्पर्श न हो। यदि सम्भव हो तो शिखर से दूर बनायें। 7. ओवर हैड पानी की टंकी नैऋत्य दिशा में बनाना श्रेयस्कर है | आग्नेय में इसे कदापि न बनायें। 8. ओवर हैड टंकी को ऊपर से ढकी हुई रखें। कूप जिन मन्दिर में पूजा आदि धर्म कार्यों के लिए कुएँ के जल का उपयोग किया जाता है। यदि मन्दिर के परिसर में ही कुएँ का निर्माण किया जाए तो इससे कुएं में भी स्वच्छता बनी रहती है तथा जल लाते समय भी किसी प्रकार की अशुद्धि का भय नहीं रहता है। दर्शनार्थियों एवं मुनि साधकों के लिए भी कूप जल की आवश्यकता होती ही है अतः बहुत-सी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मन्दिर में एक कुँआ निर्मित करना जरूरी है। वास्तुशास्त्र के अनुसार विभिन्न दिशाओं में जलाशय बनाने के निम्न लाभ होते हैं दिशा ईशान पूर्व आग्नेय दक्षिण नैऋत्य पश्चिम वायव्य उत्तर मध्य फल तुष्टि, पुष्टि, ऐश्वर्य लाभ, ज्ञानार्जन धन-ऐश्वर्य का लाभ पुत्र नाश, संतति अवरोध, धन हानि मानसिक तनाव, स्त्री नाश, धन हानि, अपयश मन्दिर के मुख्य अधिकारियों को मृत्यु भय धन लाभ, समाज में वैमनस्य एवं गलत फहमियों का वातावरण पारस्परिक मैत्री का अभाव, शत्रु वृद्धि, चोर भय धनागम सर्व हानि इस कोष्ठक का निष्कर्ष यह है कि कुआँ पूर्व, उत्तर अथवा ईशान दिशा में खुदवाना चाहिए। यह भी अवश्य ध्यान रखें कि कूप ठीक पूर्व, उत्तर या ईशान में न हो। पूर्व से ईशान के मध्य अथवा ईशान से उत्तर के मध्य में खनन करें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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