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________________ 34... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन दक्षिण दिशा में (बायें-दायें) लम्बी करवाई जाती है। कुछ भी हो, वेदी की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई में शुभ आय अवश्य देखनी चाहिए। यदि जिनबिम्बों की संख्या अधिक हो तो मण्डप का मध्यपद विस्तृत होना चाहिए अर्थात जिनबिम्बों की संख्या के अनुसार पीठिका (वेदी) लम्बी-चौड़ी और उन्नत बनवानी चाहिए । फिर जिनबिम्बों की अपेक्षा के अनुसार वेदिका (पीठिका) की चारों दिशाओं में तीन, पाँच, सात अथवा उससे भी अधिक मेखलाओं (सहारा दे सके ऐसे ऊँचे स्थान ) का निर्माण करवायें, जिससे अनेक जिन बिम्बों का समावेश अच्छी तरह हो सके और सभी प्रतिमाओं के दर्शन भी भलीभाँति किए जा सकें। वेदिका के प्रकार - निर्वाण कलिका के अनुसार वेदिका आठ प्रकार की होती है। आचार्य पादलिप्तसूरि ने प्रत्येक वेदी के भिन्न-भिन्न नाम बतलाये हैं1. नन्दा 2. सुनन्दा 3. प्रबुद्धा 4. सुप्रभा 5. सुमंगला 6. कुमुदमाला 7. विमला और 8. पुण्डरीकिणी। 1. एक हाथ चौकोर और चार अंगुल ऊँची वेदिका नन्दा कहलाती है। 2. दो हाथ चौकोर और आठ अंगुल ऊँची वेदिका सुनन्दा कहलाती है। 3. तीन हाथ चौकोर और बारह अंगुल ऊँची वेदिका प्रबुद्धा कहलाती है। 4. चार हाथ चौकोर और सोलह अंगुल ऊँची वेदिका सुप्रभा कहलाती है। 5. पाँच हाथ चौरस और बीस अंगुल ऊँची वेदिका सुमंगला कहलाती है। 6. छह हाथ चौरस और चौबीस अंगुल ऊँची वेदिका कुमुदमाला कहलाती है। 7. सात हाथ चौरस और अट्ठाईस अंगुल ऊँची वेदिका विमला कहलाती है। 8. आठ हाथ चौरस और बत्तीस अंगुल ऊँची वेदिका पुण्डरीकिणी कहलाती है। शुभ आय लाने हेतु वेदिकाओं के उपर्युक्त माप में एक-एक अंगुल की वृद्धि कर सकते हैं। 8 आचार्य पादलिप्तसूरि के पश्चाद्वर्ती प्रतिष्ठाकल्पों में वेदिकाओं का स्वरूप एवं परिमाण उससे भिन्न बतलाया गया है। इसका मुख्य कारण प्रतिष्ठा मंडप का रूपान्तरण होना माना जा सकता है। आचार्य पादलिप्तसूरि ने प्रतिष्ठा मंडप को अधिवासना मंडप कहा है। इसका अर्थ यही है कि वह मण्डप
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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