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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ...35 अधिवासना और प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य क्रियाओं के लिए बनवाया जाता था, उसमें प्रतिष्ठाचार्य, शिल्पी और चार इन्द्र प्रमुख स्नात्रकार ही जाते थे और प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधान करते-करवाते थे। प्रतिष्ठा मंडप के द्वार के सामने दर्शकों के लिए सभा मंडप बनवाया जाता था। कालान्तर में इस चतुर्मुख प्रतिष्ठा मण्डप के स्थान पर एक ही दिशा में तीन द्वार और पांच द्वार के मण्डप बनने लगे हैं तथा चौकोर मण्डप के स्थान पर लम्ब चौरस और माप में उत्कृष्ट परिमाण से भी अधिक माप वाले प्रतिष्ठा मंडप बनने लगे हैं। क्रियाकारकों और दर्शकों का एक ही मंडप में समावेश होने लगा है, इसी कारण वेदिकाएँ भी मध्य भाग की जगह सामने की दीवार के समीप बनने लगी हैं और वह भी चौकोर के स्थान पर लम्ब चौरस आकार में बनती है। ___ वेदिका और मंडप के सम्बन्ध में यह परिवर्तन अंजन प्रतिष्ठा और स्थापना प्रतिष्ठा के अन्तर को विस्मृत करने के कारण आया है। स्थापना प्रतिष्ठा के लिए मंडप और वेदिका का यह परिवर्तित स्वरूप भले ही स्वीकार कर लिया जाये तो भी अंजनशलाका-प्रतिष्ठा के प्रसंग पर मंडप और वेदी का निर्माण शास्त्रोक्त विधि के अनुसार ही करना चाहिए। दिगम्बरीय आचार्य जयसेन के अनुसार वेदी चार प्रकार की होती है- 1. चौकोर वेदी 2. कमलाकार वेदी 3. अर्ध चन्द्राकार वेदी 4. अष्टकोण वेदी। इनमें प्रथम वेदी सुखदायिनी है और उसका उपयोग बिम्ब प्रतिष्ठा में, द्वितीय वेदी का उपयोग ज्ञान कल्याणक में, तृतीय वेदी का जन्म कल्याणक में तथा चतुर्थ का उपयोग तप कल्याणक में होता है। इस प्रकार मंदिरों में अधिकांश चौकोर एवं कमलाकार वेदी पर बिम्ब स्थापित किए जाते हैं। वेदिका निर्माण के साधन- वेदी किन सामग्रियों से बनवाई जाये? आचार्य पादलिप्तसूरि ने इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी है किन्तु परवर्ती विधि ग्रन्थों में शुद्ध जल एवं शुद्ध मिट्टी से निर्मित कच्ची ईंटों से वेदी बनवाने का उल्लेख है। तदनुसार वेदिका का निर्माण कच्ची ईंटों से करवाना चाहिए। वेदिका निर्माण कब और उसके अधिकारी? सामान्यत: अंजनशलाका-प्रतिष्ठा और बृहद महापूजाओं के समय वेदिका की रचना होती है। आजकल दीक्षा आदि में भी वेदिका बनवाते हैं। उस वेदी पर चल प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा या पंच धातु की प्रतिमा विराजमान करते हैं। इन वेदिकाओं का निर्माण शुभ भाव युक्त कारीगरों के द्वारा करवाया जाता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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