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________________ जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार......13 स्थापना पूजा है। 3. द्रव्यपूजा- अरिहन्त परमात्मा के उद्देश्य से गंध, पुष्प, धूप, अक्षत आदि समर्पण करना द्रव्य पूजा है। इसी प्रकार उठकर खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार आदि शारीरिक क्रिया करना, वचनों से अरिहन्त आदि के गुणों की स्तवना करना भी द्रव्य पूजा है। जल आदि द्रव्य से प्रतिमा आदि की जो पूजा की जाती है वह भी द्रव्य पूजा है। 4. क्षेत्रपूजा- तीर्थंकर परमात्मा की कल्याणक भूमियों अथवा अतिशय स्थली आदि में पूर्वोक्त प्रकार से पूजा करना क्षेत्र पूजा है। 5. काल पूजा- कल्याणक तिथियों के दिन भगवान का अभिषेक करना तथा नन्दीश्वर पर्व एवं अन्य पर्यों में जो महिमा गाई जाती है उसे काल पूजा जानना चाहिए। क्योंकि उक्त काल की संकल्पना करके यह द्रव्यपूजा की जाती है। 6. भावपूजा- अर्हन्त आदि के गुणों का चिन्तन करना भावपूजा है। भगवान के अनंत चतुष्ट्य आदि गुणों का कीर्तन करना, त्रिकाल वंदना, पाँच नमस्कार पदों अथवा स्तोत्र आदि के द्वारा गुणगान करना भावपूजा है। __षड्विध प्रकारी पूजा का उल्लेख यद्यपि श्वेताम्बर परम्परावर्ती आगमों में नहीं है। परन्तु निक्षेपों को वहाँ भी इसी रूप में माना है अत: यह पूजा वहाँ भी स्वीकृत होनी चाहिए। वर्तमान में षड्विध प्रकारी पूजा का आचरण संभव है। अष्टविध प्रकारी पूजा जैन वाङ्मय में अष्टोपचारी पूजा का वर्णन अनेक स्थानों पर प्राप्त होता है। वर्तमान प्रचलित अष्टप्रकारी पूजा एवं अष्टोपचारी पूजा भिन्न-भिन्न है यद्यपि दोनों में कुछ समानताएँ भी परिलक्षित होती हैं। अष्टोपचारी के अन्तर्गत भी अनेक भेद देखे जाते हैं। अष्टोपचारी पूजा- आठ अंगों द्वारा जिस पूजा में उपचार किया जाए वह अष्टोपचारी पूजा कहलाती है। मस्तक, छाती, पेट, पीठ, दो हाथ और दो साथल-इनके द्वारा साष्टांग प्रणाम करना अष्टोपचारी पूजा है।53 द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका आदि के अनुसार उपलक्षण से गन्ध माल्यादि के द्वारा पूजा करना भी अष्टोपचारी पूजा जानना चाहिए। इसी के साथ दो पैर, दो घुटने, हृदय, मस्तक मन और वचन आदि आठ अंगों से युक्त प्रणाम को भी
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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