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________________ 12... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पूजा कहा है।47 राजा आदि के द्वारा स्व-सम्मान सूचक राजचिह्नों का त्याग किया जाना परमात्मा के समक्ष उनकी लघुता को प्रकट करता है। षोडशक प्रकरण एवं द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका के अनुसार दोनों हाथ, दोनों घुटने एवं मस्तक इन पाँच अंगों से भगवान को नमस्कार करना पंचोपचारी पूजा है।48 भगवती सूत्र में उल्लेखित पंचोपचारी पूजा का भी इसमें समर्थन किया गया है। __उपदेश तरंगिणी के अनुसार गन्ध, माल्याधिवास, संस्कार विशेष, धूप एवं दीपक के द्वारा अथवा पुष्प, अक्षत, गन्ध, धूप, दीप के द्वारा जो पूजा की जाती है, वह पंचोपचारी पूजा है।49 चैत्यवंदन महाभाष्य, श्राद्धविधि प्रकरण, सम्बोध प्रकरण में भी उपदेश तरंगिणी में वर्णित पुष्प, अक्षत, गन्ध, धूप एवं दीपक से युक्त पंचोपचारी पूजा का समर्थन किया गया है।50 योगिराज आनंदघनजी महाराज सुविधिनाथ भगवान के स्तवन में भी पंचोपचारी पूजा का उल्लेख करते हैं। कुसुम अक्षत वर वास सुगन्धि धूप दीप मन साखी रे, अंगपूजा पणभेद सुणी ने गुरु मुख आगम भाखी रे ।। दिगम्बर परम्परा में वर्णित चतुर्विध प्रकारी पूजाओं में ऐन्द्रध्वज महायज्ञ जो कि इन्द्रों द्वारा किया जाता है, उसे मिलाकर पूजा के पाँच भेद भी माने गए हैं। सागार धर्मामृत एवं चारित्रसार में भी इन्हीं पाँच प्रकार की पूजाओं का उल्लेख किया गया है। षड्विध प्रकारी पूजा ___ वसुनन्दि श्रावकाचार में निक्षेपों के आधार पर पूजा के छ: प्रकार बताए गए हैं- 1. नाम, 2. स्थापना, 3. द्रव्य, 4. क्षेत्र, 5. काल और 6. भाव।52 इन छः भेदों की अपेक्षा जिन पूजा छ: प्रकार से की जा सकती है। 1. नाम पूजा- अरिहन्त आदि का नाम उच्चारण करके विशुद्ध प्रदेशों से जो पुष्पक्षेपण किये जाते हैं, उसे नाम पूजा जानना चाहिए। 2. स्थापना पूजा- जिनेश्वर भगवान की सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना ऐसे दो प्रकार की स्थापना पूजा बताई गई है। आकारवान वस्तु में अरिहन्त आदि के गुणों का आरोपण करना सद्भाव स्थापना पूजा है। अक्षत, वराटक आदि में अपनी बुद्धि से अमुक देवता का आरोपण करना असद्भाव
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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