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________________ 318... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... है, वहीं तेरहपंथी परम्परा में सचित्त द्रव्यों से पूजा करने को हिंसा मानते हुए फूलों के स्थान पर रंगीन चावल, लवंग, गरी गोले के छोटे टुकड़े तथा प्रक्षाल के स्थान पर मात्र गीले वस्त्र से प्रतिमा को पोंछते हैं। यद्यपि तेरहपंथ परम्परा सचित्त द्रव्यों से पूजा करना स्वीकार नहीं करती। यद्यपि पूजा हेतु प्रयुक्त दोहे आदि में सचित्त द्रव्यों का स्वीकार किया गया है। इसी पंथ के संस्थापक भैया भगवतीदास ने ब्रह्मविलास में जिनप्रतिमा की फलपूजा आदि का वर्णन करते हुए विविध पुष्पों, जन्माभिषेक हेतु 108 कलश एवं प्रभु श्रृंगार आदि की चर्चा की है।126 दिगम्बर परम्परा के अनुयायी तीर्थंकरों की पिंडस्थ, पदस्थ एवं रूपातीत तीनों अवस्थाओं में पूजा करते हैं। शांतिपाठ, स्वयंभू स्तोत्र आदि में अभिषेक, सुगंधित द्रव्यों से विलेपन, तिलक, अलंकार आदि से तीर्थंकर की जन्मकल्याणक पूजा का वर्णन है।127 स्नान, विलेपन, वस्त्र, मुकुट, रत्न एवं पुष्प मालाओं आदि से राज्यावस्था की पूजा; वस्त्र, अलंकार, धूप, दीप, वाजिंत्र, रथयात्रा आदि से दीक्षा कल्याणक की पूजा, आहार, मिष्ठान्न, तीमन, पके चावल, फल आदि अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थों से श्रमणावस्था की पूजा कर पिंडस्थ अवस्था की पूजा कर सकते हैं। पदस्थ अवस्था की पूजा हेतु अष्टप्रातिहार्य, पुष्पपुंज, अष्टमंगल, स्वर्ण पुष्प, धूप, नाटक, ध्वजा, धर्मचक्र आदि से केवलज्ञान अवस्था की पूजा की जाती है। रूपातीत सिद्धावस्था की पूजा स्तुति, स्तोत्र, प्रतिपत्ति, वंदन आदि के द्वारा भक्ति पूजा के रूप में की जाती है। यदि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रवर्तित पूजा विधियों का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करें तो यहाँ पर भी श्वेताम्बर परम्परा की भाँति पंचोपचारी, अष्टोपचारी एवं सर्वोपचारी पूजा का प्रचलन था। वहाँ पर नित्य प्रक्षाल भी होता था। स्त्रियों को भी पुरुषों की भाँति जिनपूजा का समान अधिकार था। यदि वर्तमान प्रचलित पूजा विधानों पर दृष्टिपात करें तो दिगम्बर परम्परा में आंगी का प्रचलन नहीं है क्योंकि वहाँ पर जिनप्रतिमा की मात्र केवली अवस्था मानी जाती है। परंतु प्रतिष्ठा, रथयात्रा आदि में वहाँ भी परमात्मा को वस्त्रअलंकार आदि से सजाया जाता है। वर्तमान दिगम्बर परम्परा में बीसपंथी परम्परा में सचित्त द्रव्यों से पूजा की जाती है एवं स्त्रियों को भी वहाँ पर श्वेताम्बर
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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