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________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 319 परम्परा के समान पूजा का अधिकार दिया गया है। वहीं दिगम्बर की तेरहपंथी परम्परा में जल, पुष्प, फल, धूप, दीपक, आरती आदि अनेक द्रव्यों को सचित्त मानते उनसे पूजा 'करने का निषेध करते हैं क्योंकि इन द्रव्यों से पूजा कर में हिंसा होती है। इसी प्रकार मुकुट, कुंडल, रत्न एवं पुष्पमाला आदि से युक्त अलंकार पूजा को भोग एवं परिग्रह का प्रतीक मानकर उसका भी वर्जन किया है। परंतु उन्हीं के आचार्यों की रचनाओं में सचित्त फल आदि का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रायः विधान तो समान है मात्र अंगरचना, सचित्त द्रव्यों से पूजा आदि को लेकर मुख्य भेद परिलक्षित होता है। इतिहास के दर्पण में जिनपूजा जिन पूजा एवं जिन मूर्तियों की ऐतिहासिकता आगम प्रमाणों से तो सिद्ध हो ही जाती है। यदि इतिहासवेत्ताओं एवं पुरातत्त्वशोधों की अपेक्षा से विचार करें तो मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, बलुचिस्तान, पश्चिमी पंजाब, अफगानिस्तान आदि प्रदेश एवं सिन्धु व्यास आदि नदियों के तटवर्ती इलाकों की खुदाई से जो प्राचीन सामग्री प्राप्त हुई है जिसे हम सिन्धुघाटी की संस्कृति के नाम से जानते हैं। यह सांस्कृतिक संपदा लगभग 3000 वर्ष प्राचीन मानी जाती है। इसमें कई वस्तुएँ जैन धर्म से सम्बन्धित भी प्राप्त हुई है। आर्य समाज प्रवर्त्तक स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार विश्व में सर्वप्रथम मूर्तिपूजा का प्रारंभ जैन संप्रदाय द्वारा ही हुआ है। अन्य धर्मावलम्बियों ने जैनों का अनुकरण करते हुए ही मूर्तिपूजा प्रारंभ की है। यह कथन जैन धर्म में मूर्तिपूजा की ऐतिहासिकता को सिद्ध करता है। भारत में ही नहीं विश्व के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन मूर्तियों के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं। वर्तमान का अफगानिस्तान प्राचीन समय के गांधार देश का ही हिस्सा था। इसका प्राचीन नाम आश्वकायन भी उपलब्ध है । वहाँ सिर पर तीन छत्र सहित भगवान ऋषभदेव की 175 फुट ऊँची खड़ी मूर्ति एवं 23 तीर्थंकरों की छोटी प्रतिमाएँ पहाड़ को तराश कर बनाई गई थी। 14वीं शती में जिनप्रभसूरि चतुर्विंशति महातीर्थ नामक कल्प में शांतिनाथ तीर्थंकर के महातीर्थ का उल्लेख करते हुए लिखते हैं
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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