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________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भो में ...317 चंदन एवं पुष्पपूजा का वर्णन करते हुए कहा है कि पूजक जिनप्रतिमा में गुणों की स्थापना करने के भाव से बैठे और इष्ट लग्न में जिनप्रतिमा को चंदन से तिलक करें। जिनप्रतिमा के सर्वांगों में मंत्र न्यास करें। फिर विविध प्रकार के पुष्पों द्वारा अनेक प्रकार से पूजा करें।121 जिनप्रतिमा की विविध द्रव्यों से पूजा करने का उल्लेख करते हुए सुगंधित जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीपक, धूप, सचित्त पुष्प, अष्टमंगल आदि पूजाओं का उल्लेख है।122 जिनप्रतिमा की अवज्ञा आशातना करने के दुष्परिणाम बताते हुए राजवार्तिक में कहा गया है- “श्री जिनमंदिर के पुष्पमाला, धूपादि चुराने वाला अशुभ नाम कर्म का बंध करता है।" इस कथन से यह तथ्य प्रमाणित हो जाता है कि पुष्प, पुष्पमाला, केसर, चंदन, धूपादि सामग्री दिगम्बर परम्परा में भी अंग-अग्र पूजा हेतु मान्य थी।123 वसुनन्दी जिनसंहिता के अनुसार जिनप्रतिमा का कुंकुम आदि (केसरचंदन कर्पूर) से विलेपन किए बिना अनर्चित चरण युगलों के जो व्यक्ति दर्शन करता है वह ज्ञानहीन है। इससे यह ज्ञात होता है कि विलेपन पूजा न करने वाले को जिनाज्ञा विराधक माना गया है।124 __जिनपूजा से होने वाली उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा हैजिनस्तुति, जिनस्नान, जिनपूजा और जिनोत्सव को जो भक्तिपूर्वक करता है उसे मनवांछित लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।125 समाहारतः पूर्वकाल एवं मध्यकाल में प्राप्त प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि दिगम्बर परम्परा में भी पंचोपचारी, अष्टोपचारी एवं सर्वोपचारी पूजा का विधान था। वहाँ नित्य अभिषेक भी होता था तथा स्त्रियों को पुरुषों की भाँति जिनपूजा हेतु समान अधिकार भी था। यदि अर्वाचीन समाचारी का अध्ययन करें तो बीस पंथी एवं तेरहपंथी परम्पराओं में कई मुद्दों को लेकर पूजा सम्बन्धी मतभेद है। दोनों परम्पराएँ मात्र केवली अवस्था में ही जिनबिम्ब का स्वीकार एवं उनकी पूजा करती है तथा आंगी आदि से पूजा करने पर भोग-परिग्रह-आडंबर आदि मानकर उसका निषेध करती है। किन्तु प्रतिष्ठा, पंचकल्याणक, रथयात्रा आदि में परमात्मा को वस्त्रालंकार से सुसज्जित करते हैं। बीसपंथी परम्परा सचित्त द्रव्य से पूजा एवं स्त्रियों को भी समान अधिकार देने का समर्थन करती
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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