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________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भो में...313 उपाध्याय श्री सकलचंद्रजी ने पूजा प्रकरण के आधार पर पद्य भाषा में इक्कीस प्रकार की पूजाओं का निरूपण किया है। इसमें वर्णित पूजा प्रकारों में पूजा प्रकरण से भिन्नता है। वे पूजाएँ निम्न हैं 1. स्नान 2. विलेपन 3. चंदन 4. पुष्प 5. वास 6. चूणा 7. चूर्ण 8. पुष्पमाला 9. अष्टमंगलालेखन 10. दीप 11. धूप 12. अक्षत 13. ध्वज 14. चामर 15. छत्र 16. मुकुट 17. दर्पण 18. नैवेद्य 19. फल 20. नृत्य 21. बाजित्र।94 इन उल्लेखों से यह स्पष्ट होता है कि श्वेताम्बर परम्परा में आगम काल से लेकर अब तक हर समय में जिनपूजा का प्रवर्त्तन था। यद्यपि उनमें काल सापेक्ष अनेकशः परिवर्तन भी होते रहे। परन्तु उसके अस्तित्व पर उनका कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं होता। अत: यह कह सकते हैं कि जिनपूजा शाश्वत एवं शास्त्र सम्मत विधान है। दिगम्बर साहित्य में जिनपूजा का महत्त्व यदि हम दिगम्बर ग्रन्थों का आलोडन करें तो स्पष्ट होता है कि इस परम्परा में भी पूजा विधान पूर्व से ही प्रचलित है। वर्तमान में वहाँ भी तेरहपंथी एवं बीसपंथी परम्परा में पूजा विषयक कई मतभेद हैं तथा तारगपंथ मूर्ति पूजा का विरोधी है। दिगम्बर परम्परा में भी सर्वोपचारी, अष्टोपचारी एवं पंचोपचारी आदि पूजाओं का विधान है, जो निम्न विवरण से सिद्ध हो जाता है। धवला के अनुसार जिनप्रतिमा का दर्शन करने से निधत्ति और निकाचित जैसे प्रगाढ़ कर्मों का क्षय हो जाता है इसलिए सम्यक्त्व का प्रमुख कारण जिनप्रतिमा को माना गया है।95 तिर्यंचों में किन्हीं को जातिस्मरण से, किन्हीं को धर्म श्रवण से और किन्हीं को जिनप्रतिमा के दर्शन से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। मनुष्यों में भी इसी प्रकार जानना चाहिए।96 जिनसेनाचार्य कृत आदिपुराण के अनुसार उत्तमकुल के श्रावक को जिनपदस्पर्शित पुष्पमाला अपने सिर पर धारण करनी चाहिए।97 अजितनाथ पुराण में भी भगवान की माता द्वारा बाल्यावस्था में अष्टाह्निका महोत्सव करके श्री अर्हत प्रतिमा का विलेपन करने, पुष्पमाला पहनाने तथा जिन चरण को स्पर्श की हुई माला अपने पिता को देने एवं पिता द्वारा पुन: उसे
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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