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________________ 314... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पुत्री को देकर उसे विदा करने का वर्णन है । यह प्रसंग विवाह आदि का ज्ञात होता है | 98 आचार्य पद्मनन्दी ने दीपकों की श्रेणी से जिनप्रतिमा की आरती करने का प्ररूपण किया है।” जिनसंहिता में कार्तिक मास के कृतिका नक्षत्र की संध्या के समय जिन प्रतिमा के समक्ष नाना प्रकार के नैवेद्य एवं घृत, कपूर आदि से पूरित दीपक रखने का विधान है। 100 षटकर्मोपदेश माला में त्रिकाल दीपक पूजा करने का उल्लेख है। 101 हरिवंश पुराण में लिखा है कि श्रीजिनेन्द्रदेव के अंग को इन्द्राणी दिव्यानन्ददायी विलेपनों से विलेपित करती है। यह विलेपन भक्तों के कर्मलेप का विघातन करता है। 102 द्रव्यसंग्रह वृत्ति में कपटी ब्रह्मचारी के द्वारा पार्श्वनाथ प्रतिमा पर लगे रत्नों को चुराने का वर्णन है ।103 भावसंग्रह में विलेपन पूजा के फल की चर्चा करते हुए कहा गया है कि जो भव्य जीव जिनेश्वर प्रभु के चरणों में सुगन्धित चन्दन से विलेपन करता है, वह स्वाभाविक सुगन्ध सहित देवगति में निर्मल वैक्रिय शरीर प्राप्त करता है। 104 लघु अभिषेक पाठ के अनुसार पवित्र जल, सुगन्धित चन्दन, लक्ष्मी के नेत्रों से सुखकर एवं पवित्र अक्षत, उत्तम सुगन्धी पुष्प, नैवेद्य, भवन प्रकाशी दीपक, सुगन्धयुक्त धूप एवं उत्तम बड़े फलों से जिनेन्द्रदेव की पूजा करनी चाहिए। 105 सचित्र पुष्पों से पूजा करने का वर्णन अनेक दिगम्बर आचार्यों ने किया है। श्री सिद्धचक्र पूजा में शुभ तप के लिए श्रेष्ठ मंदार कुन्द और कमल आदि वनस्पति पुष्पों से सिद्धचक्र की पूजा करने का उल्लेख है। 106 सम्यक चारित्र पूजा में भी जाई, मालती आदि श्रेष्ठ सुगन्धित पुष्पों से संसार ताप को दूर करने के लिए अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, तीन गुप्ति एवं पाँच समितियों की हर्ष पूर्वक पूजा करने का वर्णन है। 107 बृहत्कथाकोष में तेर नगरी के धर्म मित्र सेठ का दृष्टांत है। उसके वहाँ धनदत्त नामक ग्वाला था। एक बार कलनन्द नामक सरोवर से उसने एक फूल तोड़ दिया, यह देखकर सरोवर की रक्षिका देवी रूष्ट हो गई। उसने कहा जो लोक में सर्वश्रेष्ठ है उसकी पूजा इस कमल से करो। यदि ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हें योग्य दंड दूंगी। ग्वाला कमल लेकर अपने स्वामी के पास गया। स्वामी वृत्तांत सुनकर राजा के पास गया। राजा सब के साथ दिगम्बर मुनि के पास गया, दिगम्बर मुनि ने उसे जिनेन्द्र देव को चढ़ाने की सलाह दी। ग्वाले ने भक्ति पूर्वक
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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