SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...259 प्रतिदिन परमात्मा के दर्शन करने से परमात्मा का स्वरूप हमारे भीतर अवस्थित हो जाता है। इसी तरह परमात्मा जो कि कोहिनूर हीरे से भी अधिक मूल्यवान, जगत चिंतामणि हैं ऐसे परमात्मा की सच्ची पहचान करने के लिए स्थिरतापूर्वक उनके दर्शन करना आवश्यक है। परमात्मा की सच्ची पहचान हो जाए तो साधक अपने आत्मस्वरूप के दर्शन कर सकता है। कैसे जाएँ परमात्मा के दरबार में? त्रिलोकीनाथ जगतवंद्य परमात्मा के दरबार में दर्शनार्थी एवं पूजार्थी वर्ग किस प्रकार पहुँचे? इसका उल्लेख शास्त्रकारों ने अनेक स्थानों पर किया है। जो जिस वर्ग का हो उसे अपनी ऋद्धि एवं ऐश्वर्य के अनुसार जिनमन्दिर जाना चाहिए, जिससे अन्य लोगों को जिनमन्दिर जाने हेतु प्रेरणा एवं अनुमोदन का अवसर प्राप्त हो। जिनधर्म का जयनाद एवं जयकार सर्वत्र गुंजायमान हो। प्रत्येक के हृदय में जिनधर्म का सम्मान हो। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए राजा, नागरश्रेष्ठि, सामान्य श्रावक आदि के मन्दिर जाने की रीति का वर्णन इस प्रकार हैराजा कैसे जाएं? जिनधर्मानुरागी राजा-महाराजा आदि को चार प्रकार के सैन्यबल के साथ छत्र, चामर आदि राजचिह्नों को धारण करते हुए सुंदर वस्त्र, अलंकार आदि से सुसज्जित होकर, आडंबर सहित, सपरिवार गाजते-बाजते जिनमन्दिर जाना चाहिए। इस प्रकार जाने से सम्पूर्ण नगर में जिनधर्म की प्रभावना होती है। कई लोग दर्शन की इस प्रक्रिया का अनुमोदन कर भव्यत्व को प्राप्त करते हैं तो कई जन जिनधर्म की प्रशंसा, अनुमोदना, गुणगान आदि करके बोधि को प्राप्त करते हुए आत्म श्रेयस् के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। राजा के समान उनके अमात्य, मंत्री आदि को भी योग्य रीति से दर्शन करने जाना चाहिए।18 नगरसेठ एवं श्रीमंत श्रेष्ठि किस प्रकार जाएं? प्रतिष्ठित श्रीमंत श्रेष्ठियों को सम्पूर्ण सामग्री सुंदर रूप से सजाकर, ठाठबाट पूर्वक सपरिवार जिनमन्दिर जाना चाहिए। इस विधि से जिनालय की ओर प्रस्थान करने पर भावोल्लास में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है और परमात्म भक्ति में विशेष वेग बनता है। मार्ग में स्थित लोगों द्वारा इस प्रक्रिया को देखे जाने पर
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy