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________________ 260... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... उनके मन में भी परमात्मा दर्शन की भावना उत्पन्न होती है। इसी के साथ मार्ग में दान देते हुए जिनमन्दिर जाना चाहिए। इससे अन्य लोगों के मन में जिनशासन के प्रति बहुमान पैदा होता है। करन करावन और अनुमोदन इस सिद्धान्त के अनुसार अनेक जीव कल्याण मार्ग पर आरूढ़ होते हैं। 19 सामान्य श्रावक किस प्रकार दर्शन करने जाएँ ? सामान्य श्रावक को स्व परिस्थिति अनुसार वस्त्र, अलंकार आदि धारण करके स्वजन, मित्र, परिवार आदि के साथ उल्लासपूर्वक एवं परमात्मा की जय-जयकार करते हुए जिनमन्दिर जाना चाहिए। 20 शास्त्रों में वर्णित विधि के अनुसार जिनदर्शन हेतु जाने से परमात्म भक्ति में निरन्तर उत्साह बना रहता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समूह में रहना उसका स्वभाव है। सामूहिक रूप से दर्शन आदि करने पर नए लोगों को सहायता मिलती है। अनेक अज्ञजनों को भक्ति का मार्ग प्राप्त होता है । सर्वत्र जिनधर्म की प्रभावना होती है। परमात्म दर्शन के भाव अन्य लोगों के मन में भी जागृत होते हैं। इससे सर्वत्र जिनधर्म की महिमा प्रसरित होती है तथा अन्य धर्मानुयायियों के हृदय में जिनधर्म के प्रति अहोभाव बढ़ता है। अत: यथासंभव परमात्म दर्शन हेतु सामूहिक रूप से एवं आडम्बर सहित जाना चाहिए। सपरिवार जाने से बालक एवं युवावर्ग में भी परमात्म भक्ति के संस्कार दृढ़ होते हैं। इसी के साथ समाज में एक धार्मिक, सदाचारी, नैतिक व्यक्ति के रूप में पूजार्थी की छवि बनती है। इससे लौकिक एवं लोकोत्तर कल्याण भी निश्चित रूप से होता है। एकाकी दर्शन करने वाले श्रावकों को भी मार्गस्थ दीन-दुखियों पर अनुकंपा करते हुए पाँच अभिगम आदि के पालन पूर्वक जिनदर्शन हेतु जाना चाहिए। प्रतिमा पूजन का उद्देश्य विविध परिप्रेक्ष्य में जिनपूजा करते हुए विवेक परम आवश्यक तत्त्व है। यहाँ प्रमाद, असावधानी, विषय-विकार आदि को किसी प्रकार का स्थान प्राप्त नहीं है। तत्त्वार्थसूत्र में हिंसा के स्वरूप को परिभाषित करते हुए कहा है 'प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपण हिंसा' अर्थात प्रमाद के वशीभूत होकर कार्य करना ही जीव हिंसा है। 21 प्रमाद से ही प्राणों को क्षति पहुँचती है अतः
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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