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________________ 224... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... अवस्था को प्राप्त करने के उद्देश्य में अग्रसर हो सकता है। अत: जिनपूजा जिनत्व प्राप्ति के मार्ग को सरल बनाती है। आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं जिनपूजनसत्कारयोः करणलालसः। खल्वाद्यो देशविरति परिणामः ।। परमात्मा की पूजा एवं सत्कार की लालसा देशविरति जीवन का आद्य परिणाम है अर्थात श्रावक के श्रावकत्व का प्रारंभ सर्वप्रथम जिनेश्वर देव की पूजा-उपासना से होता है। परमात्मा की पूजा के बिना श्रावक जीवन के आगे के गुण नहीं खिलते, सर्व विरति नहीं मिल सकती। भौतिक पदार्थों के राग में डूबे हुए भोगियों के लिए जिनपूजा राग-विरक्ति एवं त्याग का सोपान बनती है। इसी सोपान के माध्यम से जीव जिनत्व रूपी उत्तुंग शिखर पर पहुँच सकता है। शारीरिक स्वस्थता एवं जिनपूजा जिनपूजा का मुख्य हेतु यद्यपि शुद्ध आत्मिक अवस्था अर्थात मोक्ष की प्राप्ति है। परन्तु जैसे खेती करते हुए गेहूँ, चावल आदि धान्य प्राप्ति का उद्देश्य मुख्य होने पर भी घास आदि स्वतः प्राप्त हो जाती है वैसे ही जिनपूजा के द्वारा आध्यात्मिक उत्कर्ष के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और भौतिक लाभ स्वयमेव ही प्राप्त हो जाते हैं। _ जिनपूजा हेतु शारीरिक स्वच्छता को महत्त्व दिया गया है। जैसे- देह शुद्धि, वस्त्रशुद्धि, मुखशुद्धि आदि। इसी प्रकार पूजा उपयोगी सामग्री एवं स्थान की शुद्धता को महत्त्वपूर्ण माना गया है। इन सबका हमारे स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव देखा जाता है। जिनपूजा में प्रयुक्त सुगन्धित द्रव्य जैसे कि फूल, इत्र, चन्दन, केसर आदि का शारीरिक निरोगता एवं मानसिक प्रसन्नता से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इनके कारण अनेक रोगों से अनायास ही रक्षा हो जाती है। पंचामृत के स्पर्श से नखों का विष हल्का पड़ जाता है। चन्दन और बरास का स्पर्श होने मात्र से कई प्रकार के विषाक्त परमाणुओं का प्रभाव नष्ट हो जाता है। फूलों की सुगंध से मस्तिष्क सम्बन्धी रोग उत्पन्न नहीं होते। धूप विषैले जीवों से बचाव करता है तथा वातावरण की शुद्धि करता है। शिखरजी, पालीताना आदि पहाड़ों की चढ़ाई से रक्तशुद्धि होती है तथा रक्तचाप नियन्त्रित रहता है। जिन दर्शन एवं पूजन से शरीर में जो उत्साह एवं रोमांच उत्पन्न होता है उससे
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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