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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ... 225 एक प्रकार की प्रभावशाली विद्युत लहरें तरंगित होती हैं जो शरीर के कष्ट एवं पीड़ाओं को दूर करती है । सामूहिक बृहद् अनुष्ठानों के अवसर पर सैकड़ों लोगों के एक स्थान पर एकत्रित होने से वायु में श्वास - उछ्वास की दुर्गन्ध आदि के कारण जी मचलना एवं शरीर में रोग आदि उत्पन्न होने की संभावना रहती है किन्तु पूजा विधानों में प्रयुक्त द्रव्यों एवं शुद्धता आदि के नियमों के कारण ये सभी समस्याएँ प्रकट ही नहीं होतीं । अनामिका अंगुली के द्वारा पूजा करने से हृदय शक्तिशाली बनता है एवं तत्सम्बन्धी रोगों का निदान होता है। जिनपूजा हेतु पैदल नंगे पैर चलने से पूरे शरीर का एक्युप्रेशर हो जाता है। पूजा में प्रयुक्त विविध मुद्राएँ भिन्न-भिन्न चक्रों को विशेषरूप से प्रभावित करती हैं तथा ग्रन्थितंत्रों आदि का सन्तुलन बनाए रखती हैं। पूजा के दौरान उत्पन्न प्रेम, भक्ति, समर्पण आदि की आन्तरिक अनुभूतियाँ एक विशिष्ट आनंद का अनुभव करवाती हैं तथा शारीरिक स्वस्थता एवं स्फूर्ति में सहायक बनती हैं। भावपूजा के दौरान प्राणिधान त्रिक की परिपालना करते हुए शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक एकाग्रता के कारण अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्राव एवं उनके कार्यों का नियमन होता है तथा सकारात्मक शारीरिक ऊर्जा वलय का निर्माण होता है जो शरीर को तेजस्वी, ओजस्वी एवं प्रभावी बनाता है। कहते हैं 'पहला सुख निरोगी काया' अतः व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जगत में सफलता को प्राप्त करने के लिए शारीरिक स्वस्थता परम आवश्यक है। जिनपूजा के द्वारा यह सहज प्राप्त हो जाती है । तनावमुक्ति का अनुभूत प्रयोग जिनपूजा शारीरिक स्वस्थता हो या आध्यात्मिक उत्कर्षता या फिर बौद्धिक स्थिरता इन सभी का विकास तभी संभव है जब व्यक्ति का मन स्वस्थ, स्थिर और सकारात्मक विचार शक्ति से युक्त हो । मनःस्थिति शान्त एवं प्रसन्न हो तो व्यक्ति विपरीत एवं विकट परिस्थितियों में भी अपना मार्ग शोधन कर सफलता प्राप्त कर लेता है। चित्त प्रफुल्लित हो तो काटना, नोंचना आदि बाल सुलभ चेष्टाएँ व्यक्ति को प्रसन्न करती हैं, वहीं खिन्नता होने पर यही क्रीड़ाएँ क्रोध एवं चिड़चिड़ापन उत्पन्न करती है। इन मानसिक क्रीड़ाओं का प्रभाव हमारी ग्रन्थियों पर भी पड़ता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाला रस प्रसन्नता में शक्तिवर्धक तथा तनाव में शक्तिनाशक होता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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