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________________ 222... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... श्रीराम आचार्य के अनुसार मूर्तिपूजा भावनाओं को केन्द्रीभूत करती है । जिस प्रकार छोटे बच्चे को 'क' से कबूतर और 'ख' से खरगोश पढ़ाना पड़ता है, उसी प्रकार मूर्तिपूजा के माध्यम से अध्यात्म का प्रारंभिक शिक्षण दिया जाता है । मूर्तिपूजा प्रारम्भिक चरण है जिसके सहारे भगवान को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है। आज हम यदि किसी भी युवा के कमरे में जाएं तो किसी न किसी खिलाड़ी, व्यवसायी (Businessman), नेता, अभिनेता या फिर किसी सफल व्यवसायी का फोटो अवश्य लगा हुआ मिलेगा, ऐसा क्यों? क्योंकि वह युवा उसे चाहता है, उसका सम्मान करता है, उसे अपने जीवन का आदर्श (Role Model) मानता है। अपने आपको उसी के जैसा बनाना चाहता है । उस फोटो या पोस्टर को देखकर उसे हर समय प्रेरणा और एक प्रकार की Positive energy प्राप्त होती रहती है । इसी प्रकार जिनप्रतिमा का दर्शन-पूजन करते हुए अंत:करण में जो श्रद्धा प्रकट होती है वह साधक को स्व-स्वरूप प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हुए अपने आत्मदेव के प्रति सजग रखती है। ऐसे ही अनेक पहलू हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि जिनपूजा साधक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंश है। सर्वांगीण विकास का महत्त्वपूर्ण चरण जिनपूजा मनुष्य को एक बुद्धिमान प्राणी समझा जाता है। इसी कारण प्रत्येक कार्य करने से पूर्व वह सर्वप्रथम उसके लाभ एवं हानि विषयक चिंतन करता है। अनेकशः आचार्यों, चिंतकों, शरीर विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों ने जिनपूजा के विविध पक्षों पर भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्यों में अध्ययन कर इसके रहस्यों को प्रकट किया है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने पंचाशक प्रकरण में जिनपूजा की लाभ विषयक चर्चा करते हुए कहा है कि देवाधिदेव जिनेन्द्र भगवान की पूजा करने से उनके प्रति सम्मान प्रकट होता है। तीर्थंकर, गणधर, इन्द्र, चक्रवर्त्ती आदि उत्तम पदों की प्राप्ति होती है और उत्कृष्ट धर्म की प्रसिद्धि होती है। पूजा करने से प्रकृष्ट पुण्य कर्म का बंध और अशुभ कर्मों का क्षय होता है । परिणामस्वरूप वीतराग अवस्था की प्राप्ति होती है। पूजा करने से पूज्य को लाभ हो या न हो पर पूजक को लाभ अवश्य होता है। जैसे मन्त्रविद्या आदि की साधना से मन्त्र आदि को
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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