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________________ 194... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... अन्यमनस्क होकर दर्शन-पूजन करना। ये सभी अरिहंत प्रभु की अनादर आशातना कहलाती है। 3. भोग आशातना- जिनालय परिसर में दस प्रकार के भोगों का सेवन करना भोग आशातना कहलाता है। भोग आशातना के दस प्रकार निम्न हैं___"तंबोल, पाण, भोयण, वाणह, मेहुन्न, सुअण, निट्ठवणं, मुत्तुच्चारं, जुअं वज्जे जिणनाह जगईए।" अर्थात तंबोल (पान-सुपारी) खाना, पानी पीना, भोजन करना, जूते पहनना, स्त्री भोग करना, थूकना, श्लेष्म फेंकना, पेशाब करना, शौच करना, और जुआ खेलना ये दस प्रकार की भोग वृत्तियाँ जिनमन्दिर में वर्जित हैं और इनका सेवन करना भोग आशातना है। ___4. प्रविधान आशातना- राग, द्वेष, मोह अथवा अज्ञान के द्वारा चित्त की जो वृत्तियाँ दूषित होती हैं उन्हें दुष्प्रणिधान कहते हैं। जिन मन्दिर में ये वृत्तियाँ त्याज्य मानी गई हैं। 5. अनुचित वृत्ति आशातना- जिनमन्दिर में नहीं करने योग्य कार्य करना अनुचितवृत्ति आशातना है। इसके चार भेद हैं- 1. विकथा (स्त्री, भोजन, राजा एवं देश सम्बन्धी कथा) करना 2. धरणा देकर बैठना 3. कलह-विवाद आदि करना और 4. घर के काम भी करना या करवाना। ये सभी वृत्तियाँ अनुचित मानी जाती हैं। जिन मन्दिर सम्बन्धी 84 आशातनाएँ अनुचित आशातना है। जिनमन्दिर सम्बन्धी आशातनाओं की चर्चा करते हुए शास्त्रकारों ने अनेक प्रकार की आशातनाओं की चर्चा की है जिनमें मुख्य रूप से जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट आशातनाओं की चर्चा की है। __1. जघन्य आशातना- जिनमन्दिर के सम्बन्ध में दस जघन्य आशातनाओं का वर्णन शास्त्रकारों ने किया है। पूर्व चर्चित दस प्रकार की भोग आशातनाएँ ही जघन्य आशातनाएँ मानी गई हैं। इन दस आशातनाओं से जिनमन्दिर में अवश्य बचना चाहिए। 2. मध्यम आशातना- शारीरिक अशुद्धि, विधि अशुद्धि अथवा अनुचित आचरण के कारण कई आशातनाएँ जिनमन्दिर में लगती है। जैनाचार्यों ने ऐसी 40 आशातनाओं का उल्लेख किया है। इन्हें मध्यम आशातना कहा जाता है। 1. मंदिर में लघुशंका (मूत्र) करना 2. मंदिर परिसर में बड़ी शंका
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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