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________________ मन्दिर जाने से पहले सावधान ...193 चैत्यवंदन महाभाष्य में वर्णित पाँच आशातनाएँ चैत्यवंदन महाभाष्य में मुख्य रूप से पाँच प्रकार की आशातना का वर्णन किया गया है- "असायणा अवन्ना, अणायरो, भोग दुप्पणीहाणं, अणुचियवित्ति सव्वा पयत्तेणं।" आशातनाएँ पाँच प्रकार की हैं- 1 अवज्ञा 2. अनादर 3. भोग 4. दुष्प्रणिधान और 5. अनुचित वृत्ति। मन्दिर परिसर में उपर्युक्त पाँच प्रकार की आशातनाओं का विवेक रखते हुए निष्ठापूर्वक इनका त्याग करना चाहिए। 1. अवज्ञा आशातना- वह क्रिया जिसके द्वारा परमात्मा का अविनय या अवज्ञा हो उसे अवज्ञा आशातना कहते हैं। इसके चार प्रकार बताए गए हैं- पाय पसारण, पल्लत्थिबंधण, बिम्बपिट्ठिदाणं च । उच्चासण सेवणया जिणपुरओ भण्णइ अवन्नं ।। (i) पाय पसारण- जिन प्रतिमा के सामने या जिनालय परिसर में पैर पसारकर बैठना। (ii) पल्लत्थिबंधण- हाथ, वस्त्र आदि से पलाठी बांधकर बैठना। (iii) बिम्बपिट्ठिदाणं- जिन प्रतिमा की तरफ पीठ करना। (iv) उच्चासण सेवणया- प्रभु से ऊँचे आसन पर बैठना। इन सभी क्रियाओं एवं ऐसी ही अन्य क्रियाओं के द्वारा परमात्मा की अवज्ञा आशातना होती है। 2. अनादर आशातना- जिनपूजा आदि करते हुए अविधि का सेवन करना या निम्न स्तर की वस्तुओं का उपयोग करना अनादर आशातना है। इसके निनोक्त चार प्रकार हैं. (i) जारिसना-रिस-वेसो- फटा, कटा, जला, मैला, सांधा हुआ ऐसे वस्त्रों का जिनपूजा में उपयोग करना। (ii) जहा तहा जम्मि- पूजा एवं दर्शन की विधि का पालन नहीं करते हुए जैसे-तैसे अविधि से पूजा करना। ___(iii) तम्मि कालम्मि- उचित एवं शास्त्रोक्त समय पर दर्शन-पूजन नहीं करना। (iv) पुयाइ, कुणइ सुन्नो- मन, वचन, काया की अस्थिरता पूर्वक एवं
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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