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________________ 142... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... यदि चींटी, मकोड़ा आदि आने की संभावना हो तो मिठाई को जाली से ढंक देना चाहिए। नैवेद्य पूजा करने हेतु वस्तु को थाली या हाथों से ग्रहण कर सांसारिक पदार्थों की असारता एवं अणाहारी पद प्राप्ति का भाव करते हुए संपुट मुद्रा में नैवेद्य चढ़ाना चाहिए । वर्तमान में नैवेद्य चढ़ाने सम्बन्धी दो परम्पराएँ देखी जाती हैं। अधिकांश आचार्य स्वस्तिक पर नैवेद्य चढ़ाने का विधान करते हैं वहीं कुछ आचार्य सिद्धशिला पर नैवेद्य चढ़ाने का उल्लेख भी करते हैं। प्रथम पक्ष के अनुसार चारों गतियों में आहार की आवश्यकता होती है और इसी के कारण संसार परिभ्रमण है। आहार एवं चारों गति त्याज्य हैं अतः आहार आसक्ति को दूर करने के लिए स्वस्तिक पर नैवेद्य चढ़ाया जाता है। सिद्धशिला पर नैवेद्य चढ़ाने का कारण स्पष्ट करते हुए जैनाचार्य कहते हैं कि नैवेद्य पूजा तो अणाहारी पद की प्राप्ति हेतु की जाती है और अणाहारी अवस्था सिद्धशिला पर ही है अतः नैवेद्य सिद्धशिला पर चढ़ाना चाहिए। वर्तमान में स्वस्तिक पर नैवेद्य चढ़ाने की परम्परा अधिक प्रचलित है। यद्यपि दोनों ही विधान अपेक्षाकृत उचित प्रतीत होते हैं। यदि आहार त्याग की भावना की अपेक्षा से विचार करें तो यह चतुर्गति से सम्बन्धित है। नैवेद्य पूजा के माध्यम से श्रावक इस संसार में रहते हुए आहार आसक्ति को न्यून करने एवं शाश्वत अनाहारी पद को प्राप्त करने की भावना करता है अतः स्वस्तिक पर नैवेद्य चढ़ाना अधिक औचित्यपूर्ण लगता है। शंका- कई लोग शंका करते हैं कि नैवेद्य तो पुजारी ले जाता है फिर उससे हमें या जिनमंदिर को क्या लाभ? समाधान-पूजा करने का सही मर्म नहीं समझने वाले मूढ़ व्यक्ति ही ऐसी शंकाएँ उत्पन्न करते हैं। कई लोग इसी कारण मंदिरों में द्रव्य चढ़ाने के स्थान पर भंडार में पैसे डालने की बात करते हैं, जिससे देवद्रव्य की वृद्धि हो सके । परन्तु जिनपूजा कोई व्यापार नहीं है। यहाँ पर लाभ-हानि का विचार करना निरर्थक है। जिनपूजा एक भाव प्रधान क्रिया है । अष्टप्रकारी द्रव्य अर्पण करते हुए जो भावों का आवेग मन में उत्पन्न होता है तथा कर्मक्षय, संसारमुक्ति एवं परमात्ममिलन की जो लालसा होती है वह पैसा भंडार में डालने से उत्पन्न नहीं
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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