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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...143 हो सकती । मात्र द्रव्य चढ़ाने या देवद्रव्य बढ़ाने से कर्म निर्जरा संभव नहीं है। कर्म निर्जरा हेतु भावों का आरोहण अधिक आवश्यक है । नैवेद्य आदि चढ़ाने के पीछे मुख्य हेतु आहार के प्रति अनासक्ति भाव को विकसित करना है। उस द्रव्य को पुजारी ले जाता है या उससे देवद्रव्य की वृद्धि होती है यह सब गौण पक्ष है। अतः द्रव्यभक्ति में इन पक्षों की विचारना नहीं करनी चाहिए। नैवेद्य पूजा सम्बन्धी जन मान्यता • भगवान को मीठा ज्यादा पसंद है इसलिए उन्हें मीठे का भोग लगाते हैं। • मिष्ठान्न को देखकर देवी-देवता शीघ्र आकर्षित होते हैं एवं मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। • मीठा खिलाने या अर्पण करने से क्लेश की निवृत्ति एवं स्नेह की वृद्धि होती है। नैवेद्य पूजा की महत्ता • महानिशीथ सूत्र के अनुसार परमात्मा की द्रव्य पूजा करने से तीर्थ की उन्नति होती है। पकाये हुए अन्न एवं मिष्टान्न से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं तथा विघ्न निवारण, रोग उपशमन आदि में सहायक बनते हैं। • अरिहंत परमात्मा की देशना पूर्ण होने के बाद पकाए हुए बलि बाकुले उछाले जाते हैं। • जब रामचंद्रजी वनवास से लौटे तब उन्होंने प्रजाजनों को अन्न की कुशलता पूछी थी। निशीथ चढ़ाये जाते हैं। सूत्र में कहा गया है कि उपद्रव को शान्त करने के लिए नैवेद्य • दस दिकपाल, भूत-प्रेत आदि देवी-देवता पके हुए धान्य से खुश होते हैं। • • पूजा नैवेद्य करने से अनादिकालीन चारो संज्ञाएँ कमजोर पड़ती हैं, जिससे जीव मुक्ति के निकट पहुँचता है। • परमात्मा को नित्य नैवेद्य आदि समर्पित करने से आहार सम्बन्धी अन्तराय कर्म का क्षय होता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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