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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...141 प्राचीन काल में यही विधान था। वर्तमान में इस प्रकार के सम्पूर्ण भोजन का थाल साधर्मिक भक्ति (संघ भोजन) आदि के समय चढ़ाए जाते हैं । परमात्मा को चढ़ाने हेतु शुद्ध एवं उत्तम द्रव्य के साथ जयणापूर्वक निर्मित मिष्टान्न का ही प्रयोग करना चाहिए। मिश्री, पतासा, गुड़ आदि भी नैवेद्य के रूप में चढ़ाए जा सकते हैं। रस की मिठाई जैसे कि रसगुल्ला, जलेबी, गुलाबजामुन, हलवा आदि दूसरे दिन बासी हो जाते हैं । सुखी हुई या बासी मिठाई परमात्मा को नहीं चढ़ाई जा सकती। कई लोग यह सोचते हैं कि चढ़ाई हुई मिठाई पुजारी ही तो लेकर जाएगा अतः वे लोग छोटे से छोटा पीस मन्दिर ले जाते हैं। कई लोग ऐसी मिठाइयाँ मन्दिर में चढ़ाते हैं जो घर में कोई नहीं खाता, यहाँ तक कि नौकर भी उसे नहीं लेगा। इस तरह के हीन भावों से परमात्मा को द्रव्य समर्पित करना कर्म क्षय की अपेक्षा कर्मबंधन का हेतु बनता है। परमात्मा को ऐसा ही द्रव्य समर्पित करना चाहिए जो हमारे खुद के लिए खाने योग्य हो। बाजार से यदि मिठाई खरीदते हैं तो उसकी निर्माण शुद्धि पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। चाकलेट, पिपरमेंट आदि अभक्ष्य पदार्थों से युक्त मिष्टान्न परमात्मा को नहीं चढ़ाना चाहिए । संभव हो तो श्रावक को घर में बनाई हुई मिठाई ही परमात्मा को चढ़ानी चाहिए। शुद्ध रीति एवं द्रव्यों के साथ भावों का जो मिश्रण एक गृहस्थ के द्वारा किया जाता है वह बाजार की मिठाईयों में संभव ही नहीं है । पूर्वकाल में जहाँ पूर्ण भोजन थाल समर्पित किया जाता था वह आज मात्र मिठाई या मिश्री के एकाध पीस तक ही सीमित रह गया है। नैवेद्य पूजा एक अग्र पूजा है अतः जिनालय के सभामंडप में अक्षत पूजा के स्थान पर ही यह पूजा की जाती है तथा प्रत्येक दर्शनार्थी एवं पूजार्थी श्रावक को यह पूजा करनी चाहिए । स्वस्तिक के ऊपर अणाहारी पद प्राप्ति की भावना से नैवेद्य चढ़ाया जाता है। यदि सामुदायिक रूप में नैवेद्य चढ़ाना हो तो थाली में एकत्रित करके फिर चढ़ाना चाहिए। रसयुक्त या गीले पदार्थों को कटोरी में रखकर चढ़ाना चाहिए जिससे चावल रसयुक्त न हो। कागज या प्लास्टिक पर रखकर नैवेद्य नहीं चढ़ाना चाहिए। इससे कागज के पैर में आने, प्लास्टिक के इधर-उधर फेंकने से जीवोत्पत्ति होने एवं गाय आदि के द्वारा उसे खाए जाने की संभावना रहती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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