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________________ 124... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... हो। यथार्थतः जो श्रावक स्वयं पुष्पों को एकत्रित करते हैं उन्हें सामायिक आदि आवश्यक कार्य पूर्ण करके शुद्ध पुष्पों की प्राप्ति हेतु जाना चाहिए। अष्टप्रकारी पूजा से पूर्व ही तद्योग्य सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए। पुष्प पूजा हेतु फूलों को पुष्प चंगेरी (फूल की छाब) अथवा थाली में रखना चाहिए। पुष्पपूजा करने वाले श्रावकों को पूजा के समय पुष्पों के साथ अत्यंत मृदुतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए । पुष्पों को आर्द्र वातावरण में या गीले वस्त्र में लपेटकर रखना चाहिए ताकि उन्हें पीड़ा न हो । परमात्मा के चरणों में पुष्प को अखंड रूप में चढ़ाना चाहिए । फूल की पंखुड़ियाँ तोड़-तोड़कर नहीं चढ़ानी चाहिए। पुष्पों को जयणापूर्वक हाथों में लेकर अत्यंत कोमलता से जिन चरणों में समर्पित करना चाहिए। पुष्पमाला बनाने हेतु फूलों के डंठलों को धागे से बांधकर फूलमाला बनानी चाहिए। पूजा की सामग्री वस्त्र या शरीर से स्पर्शित नहीं हो इसका ध्यान रखना चाहिए। खण्डित, जीव युक्त या सड़े हुए पुष्प पूजा हेतु प्रयोग में नहीं लेने चाहिए | पुष्पपूजा का ऐतिहासिक महत्त्व • अरिहंत परमात्मा के आठ प्रातिहार्यों में से एक पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य है । इसके माध्यम से देवी-देवताओं द्वारा साक्षात परमात्मा की पुष्प पूजा की जाती है। • जिन प्रतिमाओं की जल एवं चंदन पूजा संभव नहीं होती उनकी पुष्प पूजा तो हमेशा की जा सकती है। • • आगमकाल से जिनपूजा विधि में पुष्प पूजा का प्रमुख स्थान रहा है । मांडवगढ़ के मंत्री पेथडशाह प्रतिदिन पंचरंगी पुष्पों द्वारा परमात्मा की पुष्पपूजा करते थे। स्वयं राजा भी आ जाएं तो उनका ध्यान उससे विचलित नहीं होता था। • कुमारपाल राजा द्वारा भावपूर्वक चढ़ाए गए पाँच कोडी के पुष्पों के फलस्वरूप उन्हें अठारह देश का साम्राज्य प्राप्त हुआ। • नागकेतु को पुष्पपूजा करते-करते केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । • धनसार श्रावक द्वारा चढ़ाए गए पुष्प हार के लाभ का वर्णन सर्वज्ञ भी नहीं कर सकते, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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