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________________ 106... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... प्रयोग किया जाता है। दूध शुद्ध एवं ताजा होना चाहिए। संभव हो तो गाय के ताजे दुहे हुए दूध से ही प्रक्षाल करना चाहिए। पैकेट, पाउडर, बासी या डिब्बा बंद दूध का प्रयोग प्रक्षाल हेतु सर्वथा वर्जित है। अशुद्ध दूध की अपेक्षा शुद्ध जल से प्रक्षाल करना ज्यादा उचित है। पंचामृत को भी प्रक्षाल से पूर्व ही तैयार करना चाहिए। ___जिस कुँए का जल प्रक्षाल हेतु उपयोग में लिया जाता है वहाँ से आम आदमी पानी नहीं भरते हों, लोग घरों का कूड़ा-करकट वहाँ न डालते हों, कपड़े धोने-नहाने आदि का कार्य वहाँ नहीं करते हों तथा अन्य किसी भी कारण से वह जल अपवित्र न होता हो, इसकी पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। यहाँ प्रश्न हो सकता है कि प्रक्षाल हेतु कुँए के जल का ही विधान क्यों है? जैनाचार्यों के अनुसार अभिषेक हेतु कूप या कुँए का जल ही प्रयोग में लेना चाहिए क्योंकि जमीन के भूगर्भ से निर्झरित होकर कुँए में आने वाला जल अनेक प्रकार के पदार्थों से निष्पंदित होता है। भूमि को अनेक पवित्र पदार्थों एवं औषधियों का भंडार माना गया है। इन पदार्थों से प्रभावित होकर जल शुद्ध, पवित्र एवं प्रभावोत्पादक बन जाता है। इसी कारण शास्त्रकारों ने प्रक्षाल हेतु कुँए के जल का विधान किया है। पूर्व काल में इसी कारण मन्दिर निर्माण के साथ कुँए का निर्माण भी किया जाता था। आज भी कई प्राचीन मन्दिरों में कुँए देखे जाते हैं। ___ यदि कहीं पर कुँए का जल खारा हो तो वहाँ पर नदी, झरने या बावड़ी का जल भी उपयोग में ले सकते हैं, क्योंकि अनवरत प्रवाहित रहने से वह हमेशा पवित्र ही रहता है। यदि इनमें से कोई भी सुविधा उपलब्ध न हो तो बारिश का पानी स्टोर किया जाता है, ऐसी टंकी का पानी प्रक्षाल हेतु प्रयोग में ले सकते हैं। तालाब, बोरिंग, हैंडपंप का पानी अथवा मिनरल वाटर का प्रयोग वर्जित है। ये सभी जल अशुद्ध और अपवित्र माने गए हैं। तालाब का जल एक स्थान पर एकत्रित रहने एवं आम जनता द्वारा प्रयुक्त होने से अशुद्ध हो जाता है। हैंडपंप या बोरिंग का पानी भूमिगत तो होता है लेकिन उसमें भूमिगत ऑइल होने एवं लोहे के पाइप से पानी स्पर्शित होने के कारण अपवित्र माना गया है। नल एवं फिल्टर आदि के पानी को रसायनों के प्रयोग द्वारा Bacteria आदि से
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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