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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...107 रहित किया जाता है अत: वह भी अभिषेक हेतु अशुद्ध है। इसलिए अभिषेक हेतु कुँआ, नदी, झरना, बावड़ी या टंकी का जल ही उपयोग में लेना चाहिए। ___ परवर्ती ग्रन्थकारों ने जल लाने की विधि का उल्लेख करते हुए कहा है कि सम्पूर्ण अंग वाली, शील एवं सदाचार युक्त, सुहागन महिला को मौनपूर्वक 27 नवकार गिनकर कुँए से जल निकालना चाहिए और वही जल अभिषेक हेतु प्रयोग में लेना चाहिए। प्रतिष्ठा आदि मंगल विधानों में भी महिलाओं एवं कुमारी कन्याओं द्वारा कुँए का जल मंगवाया जाता है। वर्तमान में इस परम्परा का पालन नहींवत ही होता है। कुछ आचार्यों ने वर्तमान समयानुसार विधि परिवर्तन करते हुए कहा है कि जिस कुँए आदि से पानी निकालना हो वहाँ पर सूर्योदय के पश्चात जयणापूर्वक जाकर पानी निकालना चाहिए। मोटे वस्त्र से उस पानी को छानकर कलश को ढंक देना चाहिए। गरणे को पुन: कुँए में ही डाल देना चाहिए। जल लाते समय मार्ग में शुद्धि का पूर्ण उपयोग रखना चाहिए। आजकल इस विधि का पालन भी नहींवत ही किया जाता है। अधिकांश स्थानों पर नल के पानी का ही प्रयोग होता है। कई मन्दिरों में रात को ही पानी भरकर रख दिया जाता है। परंतु यह सब महती विराधना के कारण हैं। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बारिश का जल संग्रहित कर उसका प्रयोग करना सहज एवं श्रेष्ठ मार्ग है। ___ अभिषेक हेतु जल लाने एवं रखने के लिए सोना, चाँदी, पीतल या ताँबे का बर्तन प्रयोग में लेना चाहिए। प्लास्टिक, स्टील, एल्युमिनियम आदि का बढ़ता प्रयोग अनुचित है क्योंकि स्टील में लोहा होता है और प्लास्टिक में कोलतार मिलाया जाता है। मन्दिर में दोनों का ही प्रयोग निषिद्ध है। जिनेश्वर परमात्मा का अभिषेक कैसे करें? अरिहंत परमात्मा के जन्माभिषेक का अनुकरण करते समय उस अवसर का चिंतन एवं वैसे माहौल का निर्माण करना चाहिए जिससे उसी प्रकार की भावधारा बने। जन्म कल्याणक के समय देवगण हर्षविभोर होकर परमात्मा के अभिषेक के लिए विविध प्रकार के कलशों में अनेक प्रकार का जल लेकर खड़े रहते हैं। शकेन्द्र पाँच रूप बनाकर परमात्मा को ले जाते हैं और अपनी गोद में
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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