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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...105 नाद पूजा- पूजा के द्वारा प्राप्त आनंद की अभिव्यक्ति करने हेतु पूजा सम्पन्न करने के पश्चात घंटनाद किया जाता है। अष्टप्रकारी पूजा के सारगर्भित पहलू अष्टप्रकारी पूजा के विविध चरणों को सम्पन्न करते हुए यदि यह जानकारी हो कि उसे कब, क्यों, कैसे करना चाहिए? हमारे बाह्य जगत और आन्तरिक जगत में क्या परिवर्तन होते हैं, तो भावों का जुड़ाव श्रेष्ठ रूप से हो सकता है। द्रव्य से जब तक भावों का जुड़ाव न हो तब तक उस क्रिया को करने से जीव को आन्तरिक जगत में कोई विशेष उपलब्धि नहीं होती। अतः अष्टप्रकारी पूजा करते हुए उसके शास्त्रीय मार्ग एवं हेतुओं को जानना परमावश्यक है। जलपूजा का अभिप्राय और उसके कारण जिनेश्वर परमात्मा को जल अर्पण करना जलपूजा कहलाता है। अद्य प्रचलित जिनपूजा विधि में इसका प्रथम स्थान है। सामान्य व्यवहार में इसे अभिषेकपूजा या प्रक्षाल पूजा भी कहते हैं । इन्द्रों का अनुकरण करते हुए शुद्ध जल, पंचामृत, दूध आदि के द्वारा जिनबिम्ब का न्हवण करना जल पूजा है। पूर्वकाल में जब नित्य प्रक्षाल का विधान नहीं था तब अष्टोपचारी पूजा में आठवें (अन्तिम) क्रम पर जिनप्रतिमा के सम्मुख सिर्फ जल का कलश भरकर रखने का विधान था। जब भी किसी तीर्थंकर के जीव का जन्म होता है तब इन्द्र प्रभु के जीव को मेरु पर्वत पर ले जाकर विविध नदियों एवं समुद्र के जल से उनका जन्माभिषेक करते हैं। उसी जन्म कल्याणक की आराधना के प्रतीक रूप में जल पूजा की जाती है। जलपूजा करने का एक कारण जिनप्रतिमा पर लगे हुए चन्दन आदि निर्माल्य को दूर करना भी है । समस्त प्रकार की शुद्धियों का श्रेष्ठ माध्यम पानी है। जिस प्रकार जल के प्रयोग से शरीर का मैल दूर होता है वैसे ही के द्वारा आत्मा पर लगा हुआ कर्म मल भी दूर होता है। पूज जल पूजा में उपयोगी जल का स्वरूप जलपूजा हेतु जमीन से निकला हुआ शुद्ध, निर्मल, जीव जन्तु रहित मीठे जल को विधिपूर्वक छानकर उपयोग में लेना चाहिए। वर्तमान में क्षीर समुद्र के जल आदि के प्रतीक रूप में पंचामृत या दूध का
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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