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________________ 54... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पूजा विधि के महत्त्वपूर्ण चरण दस त्रिक विश्ववंद्य देवाधिदेव अरिहंत परमात्मा का दर्शन करते हुए यदि सही रूप में अन्तर्जगत का अन्वेषण, सर्वेक्षण एवं आत्मस्वरूप के दर्शन करना चाहें तो बाह्य वातावरण से स्वयं को मुक्त करके आभ्यंतर स्थिरता और आन्तरिक विशुद्धता के लिए जो आवश्यक नियम हैं उनका परिपालन जरूरी है। जिनालय में प्रविष्ट होने के बाद से लेकर जब तक बाहर आकर निवृत्ति न ली जाए तब तक शुभ भावों के निर्माण एवं स्थिरता के लिए दस मुख्य क्रियाओं को तीन के समूह में बार-बार किया जाता है। जैन शास्त्रकारों ने उसे दस त्रिक के नाम से सम्बोधित किया है। किस क्रिया को कब, कितनी बार और किस प्रकार करना चाहिए इसका समुचित एवं सुंदर वर्णन आचार्य देवेन्द्रसूरिजी ने चैत्यवंदन भाष्य में किया है। इन दस त्रिक में जिनदर्शन हेतु गृह प्रस्थान से लेकर मन्दिर से बाहर आने तक की सम्पूर्ण विधि समाहित है। ___त्रिक' का अर्थ है तीन का समूह। दस त्रिक के अन्तर्गत दस बातों का विवरण तीन-तीन के समूह में किया गया है। पूजा के उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने हेतु इन सहयोगी क्रियाओं के समुचित पालन की आवश्यकता रहती है। दस त्रिकों का सामान्य वर्णन निम्नोक्त हैं-7 1. निसीहि त्रिक 2. प्रदक्षिणा त्रिक, 3. प्रणाम त्रिक 4. पूजा त्रिक 5. अवस्था त्रिक 6. दिशा त्याग त्रिक 7. प्रमार्जना त्रिक 8. आलंबन त्रिक 9. मुद्रा त्रिक और 10. प्रणिधान त्रिक। 1. निसीहि त्रिक निसीहि शब्द का अर्थ है- निषेध करना, त्याग करना या ब्रेक लगाना। निसीहि त्रिक के द्वारा तीन स्थानों पर विविध कार्यों का त्याग किया जाता है। प्रथम निसीहि- चैत्यवंदन भाष्य के अनुसार जिनालय के अग्रद्वार पर पहली निसीहि बोली जाती है। इसके द्वारा मन्दिर में प्रवेश करने से पूर्व समस्त सांसारिक पाप कार्यों से संबंध विच्छेद कर दिया जाता है। यहाँ समस्त पाप कार्यों एवं जगत सम्बन्धी विचारों को दूर कर मात्र जिनालय विषयक चिंतन एवं प्रवृत्तियाँ खुली रह जाती हैं। द्वितीय निसीहि- दूसरी निसीहि परमात्मा के मूल गर्भगृह में पूजा हेतु प्रवेश करने से पूर्व बोली जाती है। इस निसीहि के उच्चारण के बाद मन्दिर
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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