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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...55 सम्बन्धी व्यवस्था का निरीक्षण, आदेश - उपदेश, साफ-सफाई एवं अन्य समस्त कार्यों का त्याग हो जाता है। जिनालय संबंधी सब कार्य सम्पन्न करने के बाद ही दूसरी निसीहि बोली जाती है। तृतीय निसीहि— तीसरी निसीहि अष्टप्रकारी पूजा सम्पन्न करके चैत्यवंदन करने से पूर्व बोली जाती है । द्रव्यपूजा सम्बन्धी कार्य एवं विचारों का त्याग कर परमात्मा की भावपूजा में तन्मय होने के लिए तृतीय निसीहि बोलते हैं। मुनि भगवंत एवं पौषधधारी श्रावक द्रव्य पूजा के त्यागी होते हैं। अतः वे दूसरी निसीहि रंगमंडप में प्रवेश करते समय कहते हैं । शंका- प्रश्न हो सकता है कि मन्दिर जाते समय व्यक्ति के सांसारिक कार्यों का तो वैसे ही त्याग होता है फिर निसीहि की आवश्यकता क्यों ? समाधान- गाड़ी, स्कूटर, कार या साईकिल कोई भी वाहन चलाना हो तो उसके ब्रेक पर कंट्रोल होना परम आवश्यक है। अच्छे से अच्छे घुड़सवार को सबसे पहले घोड़े की लगाम कसनी आनी चाहिए अन्यथा उपयोगी सभी वाहन बेकार है। लाखों की मर्सीडिज और बीएमडब्ल्यू भी बिना ब्रेक के एक खटारा कबाड़ के समान है, क्योंकि बिना ब्रेक की गाड़ी में यात्रा करना मृत्यु को निमंत्रण देना है। इसी प्रकार अध्यात्म के क्षेत्र में मन रूपी घोड़े की लगाम ही निसीहि है। प्रथम निसीहि बोलने के साथ ही व्यक्ति सांसारिक प्रवृत्तियों से सम्बन्ध विच्छेद कर देता है। जिनालय रूपी अध्यात्म योग की रंगभूमि पर साधक अपने आपको धीरे-धीरे अग्रसर करते हुए मन-वचन-काया रूपी त्रियोग से परमात्म चरणों में समर्पित हो जाता है तथा स्व-स्वरूप का आभास करता है। निसीहि शब्द का उच्चारण संकल्प बल को बलशाली बनाता है । व्यवहार जगत में हम देखते हैं कि जब कोई व्यक्ति पुलिस, डॉक्टर, मंत्री आदि बनता है तो उसे शपथ (Oath) दिलवाई जाती है, जबकि वह तो अध्ययन के द्वारा वैसी पात्रता प्राप्त कर चुका है। इसका मुख्य कारण है कि यह शपथ उसे स्वयं के आचार का भान करवाती है। इसी तरह भले ही मन्दिर में आने वाला व्यक्ति बाह्य वृत्तियों को छोड़कर आता है परन्तु निसीहि के द्वारा वह उनके प्रति कटिबद्ध हो जाता है। अतः सुस्पष्ट है कि निसीहि त्रिक के द्वारा समस्त सांसारिक कार्यों का त्याग
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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