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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...53 उन्हीं लोगों से एक प्रश्न है कि जब आप 500 की गड्डी गिनते हैं तब आपका मन या दृष्टि इधर-उधर जाती है? वैज्ञानिक जब प्रयोगशाला में शोध करते हैं तब क्या उन्हें सांसारिक गतिविधियाँ याद आती हैं। क्रिकेट के अन्तिम ओवर में जब हार-जीत के लिए एक-एक बॉल महत्त्वपूर्ण हो तब मोबाइल फोन या पत्नी की बातें सुहाती हैं? नहीं न-तो फिर परमात्मा के दर्शन में स्वत: एकाकारता क्यों नहीं आ सकती। जिसके मन में परमात्मा के प्रति सच्ची आस्था एवं श्रद्धा हो उसके मन में एकाकारता आ जाती है। इस अभिगम का पालन करते हुए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए • मन्दिर में प्रवेश करने के पश्चात परिचित, स्वजन या परिजन किसी से भी कोई चर्चा नहीं करनी चाहिए। . .. महिलाओं को एक-दूसरे की साड़ी, चप्पल, सब्जी-तरकारी आदि के विषय में पूछताछ नहीं करनी चाहिए। • हाथों में घड़ी पहनकर मन्दिर नहीं जाना चाहिए, इससे भी कई बार भावधारा भंग होती है। • जिनमंदिर में ऊँचे स्वर से स्तुति स्तवन आदि नहीं गाने चाहिए। इससे अन्य लोगों का ध्यान भंग हो सकता है। • मन्दिर में मोबाइल लेकर भी नहीं जाना चाहिए और यदि साथ हो तो उसे बंद (स्विच ऑफ) कर देना चाहिए। • एक क्रिया करते हुए मन को उसी क्रिया से जोड़े रखना चाहिए। एक साथ सब क्रियाओं की तरफ ध्यान लगाने पर एक भी क्रिया सम्यक रूप से सम्पन्न नहीं होती। हर क्रिया शुभ होने पर भी किसी एक में एकाकारता आवश्यक है। इस तरह जिनेश्वर परमात्मा का दर्शन-वंदन आदि करते हए इन पाँच अभिगमों का सम्यक रूप से पालन करना चाहिए। इससे अपूर्व लाभ एवं पुण्य का अर्जन होता है और विशिष्ट आनंद की प्राप्ति होती है। इन पाँच अभिगमों का पालन अहोभावपूर्वक करने से वे अंतरंग में आत्मानंद की अनुभूति करवाते हैं। अनुशासन एवं नियम मर्यादाओं का पालन यदि मानसिक रुचि पूर्वक किया जाए तो वे विशिष्ट प्रभावशाली होते हैं। अत: आत्मकल्याण के इच्छुक सत्त्वशील व्यक्तियों को इसका पालन अवश्य करना चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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