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________________ 52... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... ____ महिलाओं के लिए उत्तरासंग के स्थान पर साड़ी आदि के द्वारा सिर ढंकना, भूमि की पडिलेहन करना, उचित एवं मर्यादायुक्त वस्त्र धारण करना आदि नियम है। वर्तमान प्रचलित जिंस, केपरी, शॉर्ट्स आदि पहनकर मन्दिर परिसर में नहीं आना चाहिए। साड़ियाँ भी आजकल इस प्रकार पहनी जाती हैं कि उनसे अंगप्रदर्शन ही अधिक होता है। अत: श्राविकावर्ग को भी मर्यादायुक्त वेशभूषा में जिनमन्दिर जाना चाहिए। 4. अंजलिबद्ध प्रणाम- दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे के साथ मिलाकर मस्तक झुकाना अंजलिबद्ध प्रणाम है। जहाँ से जिनमन्दिर का शिखर या ध्वजा दिखाई दे वहाँ से अथवा जिनालय में प्रवेश करते साथ तीर्थंकर परमात्मा के प्रथम दर्शन होने पर दोनों हाथ जोड़ते हुए एवं मस्तक झुकाकर "नमो जिणाणं' कहना चौथा अंजलिबद्ध नामक अभिगम है। परमात्मा के प्रति बहुमान व्यक्त करने की यह एक विशिष्ट रीति है। इससे जीवन में लघुता एवं विनयगुण का विकास होता है। इस अभिगम पालन में रखने योग्य सावधानियाँ इस प्रकार हैं • दोनों हाथों में पूजन सामग्री होने पर हाथ न भी जोड़ सकें तो मस्तक झुकाकर 'नमो जिणाणं' अवश्य बोलना चाहिए। __• मार्ग में जिनमन्दिर आ जाए तो चप्पल उतारकर नमस्कार करना चाहिए। • मुख्य द्वार पर नमन किए बिना कभी प्रवेश नहीं करना चाहिए। इसीलिए प्राचीन मन्दिरों एवं घरों के मुख्य द्वार छोटे बनाए जाते थे। • पुरुष वर्ग को मस्तक पर हाथ लगाना चाहिए। महिलाओं को हाथ ऊपर किए बिना ही मस्तक झुकाकर नमो जिणाणं कहना चाहिए। 5. प्रणिधान- प्रणिधान शब्द का अर्थ है- मन की एकाग्रता या एकाकारता। मन, वचन एवं काया से परमात्मा भक्ति में तन्मय एवं एकाग्र बनना प्रणिधान नामक अभिगम है। प्रारंभ के चार अभिगम काया को अंकुशित करते हैं वहीं यह अन्तिम अभिगम मन को नियंत्रित करने की कला सिखाता है। परमात्मा की भक्ति हेतु मन्दिर में प्रवेश करने के बाद से लेकर जिनालय से बाहर निकालने तक सांसारिक कार्यों का विचार तक नहीं करना चाहिए। कई लोग कहते हैं कि मन इतना चंचल है, इसे कैसे एक स्थान पर एकाग्र करें?
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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