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________________ जिनपूजा – एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...51 • ऑफिस या स्कूल जाते हुए जो लोग दर्शन करने जाते हैं उन्हें भी खाली हाथ परमात्मा के दरबार में नहीं जाना चाहिए। • यात्रा आदि पर जाते समय जिस प्रकार हम मोबाइल, लैपटॉप, जूते, आवश्यक फाइल आदि ले जाना जरूरी समझते हैं उसी प्रकार मन्दिर उपयोगी सामग्री का बैग और पूजा के वस्त्र भी अवश्य साथ रखने चाहिए। • जहाँ तक संभव हो मन्दिर की सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए। स्वद्रव्य से ही परमात्म भक्ति करनी चाहिए। 3. उत्तरासंग (उत्तरासन)- उत्तरासंग अर्थात दुपट्टा या उपरना। श्रावक के द्वारा जिनमंदिर जाते समय कंधे पर खेस या दुपट्टा धारण करना उत्तरासंग नाम का अभिगम कहलाता है। यह एक प्राचीन आर्य संस्कृति है। आज भी दक्षिण भारत के लोग कंधे पर दुपट्टा धारण करते हैं। शादी करने जाते समय भी कंधे पर वस्त्र धारण किया जाता है। किसी का बहुमान करते समय भी दुपट्टा या शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया जाता है। कई स्थानों पर पूजन आदि में बैठते वक्त टोपी एवं दुपट्टा धारण किया जाता है। उत्तरासंग पहनने के निम्न हेतु जैन दर्शन में बताए गए हैं • खमासमण आदि देते हुए उत्तरासंग के द्वारा भूमि की प्रतिलेखना की जा सकती है। • चैत्यवंदन आदि करते समय इसका उपयोग मुँहपत्ति के रूप में भी हो सकता है। • मुखकोश के रूप में भी उत्तरासंग का उपयोग कर सकते हैं। • उत्तरासंग की किनारियाँ सिलाई की हुई नहीं होनी चाहिए। किनारी से चरवले के समान कुँदे निकले हुए होने चाहिए। • गुरुवंदन, सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रवचन श्रवण, वरघोडे आदि के समय श्रावकों को खेस अवश्य धारण करना चाहिए। • पूजा करने वाले श्रावकों की तरह दर्शनार्थी श्रावकों को भी खेस धारण करना चाहिए। • प्रश्न हो सकता है कि पाँच अभिगम का पालन तो सभी के लिए आवश्यक है फिर महिलाएँ इसका पालन किस रूप में करती हैं?
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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