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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...35 कर सकता है। क्रमानुसार क्रिया करने से विधि का सिंचन होता है। इससे मन का तल्लीनता भी अधिक जुड़ती है। क्रिया करते समय यह प्रश्न नहीं उठता कि आगे क्या करना है? नया व्यक्ति भी उसे सहजता से सम्पन्न कर सकता है। शास्त्रकारों ने परमात्मा के त्रिकाल दर्शन का विधान किया है। यद्यपि आज के Nine to five की जीवनशैली में त्रिकाल दर्शन के क्रम से पूजन करने वाले श्रावक नहीवत रह गए हैं, परंतु सही विधि का ज्ञान होना जरूरी है, ताकि जब संभव हो हम उसका भी परिपालन कर सकें। विशेषरूप से रविवार, छुट्टी के दिन, तीर्थ यात्रा या पर्व आदि के दिनों में। इस हेतु को ध्यान में रखते हुए इस अध्याय में त्रिकाल जिनदर्शन की विधि का निरूपण किया जा रहा है। जैसा कि त्रिकालदर्शन शब्द से ही ज्ञात होता है तीन तीन बार दर्शन करना। त्रिकाल दर्शन में प्रात:कालीन दर्शन, मध्याह्नकालीन दर्शन एवं संन्ध्याकालीन दर्शन करने का वर्णन है। प्रातःकालीन दर्शन का शास्त्रोक्त विधि क्रम जैनाचार्यों ने त्रिकाल पूजा का निरूपण करते हुए उसमें सर्वप्रथम प्रात:कालीन पूजा का निर्देश किया है। उसका विधिक्रम इस प्रकार है • सर्वप्रथम प्रमाद का त्याग कर मन को परमात्म दर्शन के भावों से भावित करें। तत्पश्चात शारीरिक आवश्यक क्रियाओं को निपटाकर शुद्ध एवं उचित वस्त्र धारण करें। फिर मन्दिर उपयोगी सामग्री तैयार करें। • चमड़ें, प्लास्टिक आदि से निर्मित अशुद्ध वस्तुओं का उपयोग नहीं करें। • जूते-चप्पल आदि पहने बिना नंगे पैर जिन मन्दिर जाना चाहिए। वाहन आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि दूरी आदि का कारण हो तो श्रावकवर्ग अपना विवेक रखें। • घर से निकलते ही मौन ग्रहण कर लें। सांसारिक विचारों का त्याग करते हुए मन को शुभ भावों से युक्त रखें। • मार्ग में नीचे दृष्टि रखते हुए जयणापूर्वक मन्दिर की ओर गमन करें। • शिखर या ध्वजा के दर्शन होते ही हाथ जोड़कर 'नमो जिणाणं' कहें। • मन्दिर परिसर में प्रवेश करते ही समस्त सांसारिक कनेक्शन को कटऑफ करने के लिए प्रथम निसीहि का उच्चारण करें।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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